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आगम
(१५)
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [१७], --------------- उद्देशक: [३], -------------- दारं -1, ---- ---------- मूलं [२२२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रज्ञापनाया: मलयवृत्ती.
१७लेश्यापदे उद्देश:
प्रत सूत्रांक
सररररर
॥३५२॥
[२२२]
हंता गो!, कण्हलेसे पुढविकाइए कण्हलेसेसु पुढविकाइएमु उववजति, सिय कण्हलेसे उवषट्टइ सिय नीललेसे उचवट्टा सिय काउलेसे उववह सिप जल्लेसे उववजति सिय तल्लेसे उववइ, एवं नीलकाउलेस्सामुवि से नूर्ण भंते ! (तेउल्लेसे पुढवीकाइए ) तेउलेस्सेसु पुढविकाइएसु उववज्जइ पुच्छा, हंवा गो01, तेउलेस्सेसु पुढविकाइएसु उववजइ, सिव काहलेसे उववहह सिय नीललेसे उववर सिय काउलेसे उववइ तेउलेसे उववाह नो चेव पं तेउलेसे उबबट्टइ, एवं उकाइया वणस्सइकाइयावि, तेऊवाआ एवं चेव, नवरं एतेसि तेउलेस्सा नत्थि, वितियचउरिदिया एवं चेव तिसु लेसासु, पंचेंदियतिरिक्खजोणिया मणुस्सा य जहा पुढविकाइया आदिल्लिया तिसु लेसासु मणिया तहा छसुवि लेसासु भा०, नवरं छप्पि लेस्साओ पारेयवाओ । वाणमं० जहा असुरकु० से नूर्ण भंते ! तेउलेस्से जोइसिए तेउलेस्सेसु जोइसिपसु उवव० जहेब असुरकु०, एवं वेमाणियावि, नवरं दोहंपि चयंतीति अमिलायो । से नूर्ण भंते ! कण्हलेसे नीललेसे काउ. लेसे नेरइए कण्हलेसेसु नीललेसेसु काउलेसेसु नेरइएसु उबब. कण्ह नील० काउले० उववइ जल्लेसे उवव० तल्लेसे उववाह, हंता गो०1, कण्हनीलकाउलेसे उववजइ जल्ळेसे उववजइ तल्लेसे उववइ, से नूर्ण भंते ! कण्हलेसे जाव तेउकेस्से असुरकुमारे कण्हलेसेसु जाव तेउलेसेसु असुरकुमारेसु उववजइ, एवं जहेब नेरइए तहा असुरकुमारावि जाच थणियकुमारावि, से नूर्ण मते ! कण्हलेसे जाप तेउलेसे पुढविकाइए कण्हलेसेसु जाव तेउलेसेसु पुढविकाइएसु उववजा, एवं पुच्छा जहा असुरकुमाराण, हंता गो.1, कण्हलेसे जाव तेउलेसे पुढविकाइए कण्हलेसेसु जाव तेउलेसेसु पुढविकाइएसु सिय कण्हलेसे उवबइ सिय नीललेसे सिय काउलेसे उबट्टइ सिय ज से उववजइ त से उववर उलेसे उपवर नो
दीप
अनुक्रम [४५९]
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