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आगम
(१५)
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [११], ------------- उद्देशकः [-], ------------- दारं [-], ------------- मूलं [१७०-१७३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
११भाषा
प्रत सूत्रांक [१७०-१७३]]
प्रज्ञापनाया: भलयवृत्ती.
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॥२६६॥
दीप अनुक्रम [३९४-३९७]
य भिज्जमाणाणं कयरेशहितो अ०० तु.वि., गो.! सक्वत्थीबाई दबाई उकारियाभेदेणं भिजमाणाई अगुतडियाभेएणं भिजमाणाई अणंतगुणाई चुणियाभेदेणं भिजमाणाई अर्णतगुणाई पयराभेदे मिजमाणाई अणंतगुमाई खंडाभेदेणं भिजमाणाई अर्णतगुणाई ॥ (सूत्र १७०) नेरइएवं भंते ! जाई दबाई मासचाए मेहति ताई कि ठियाई गेण्हति अठियाई गेण्हति !, गो01 एवं चेव जहा जीवे दत्तवया भणिया सहा नेरझ्यस्सवि जाव अप्पाबडुयं । एवं एगिंदियवजो दंडतो जान वैमाणिता ॥ जीवाणं भंते ! जाई दबाई भासचाए गेहंति ताई किं ठियाई मेहति अठियाई गेहति ?, गो! एवं चेव पुदुत्तेपविणेतवं, जाब वेमाणिया २। जीवे ज भंते ! जाई दवाई सबभासताए मेण्हति ताई किं ठियाई गेहति अठियाई गेहति ?, गो! जहा ओहियदंडओ तहा एसोवि, गावरं विगलिंदिया ण पुच्छिजति, एवं मोसाभासाएवि, सच्चामोसाभासाएवि, असामोसाभासाएवि एवं चेव, नवरं असञ्चामोसामासाए विगलिंदिया पुचिजति इमेणं अमिलावणं-विगलिदिए भंते ! जाई दबाई असञ्चामोसामासाए गिण्हइ ताई किं ठिवाई गेण्हइ अठियाई मेव्हइ , गो ! जहा ओहिवदंडओ, एवं एए एगत्तपत्तेणं दस दंडगा भाणियबा (त्र १७१) जीवे णे भंते ! जाई दवाई सचभासचाए गिण्हति ताई कि सच्चभासत्ताए निसिरइ मोसमासत्ताए निसरइ सच्चामीसभासचाए निसरति असन्चामोसभासत्ताए निसरह, गो! सचभासत्ताए निसरह नो मोसमासत्ताए निसरति नो सचामोसभासत्ताए निसरति नो असचामोसमासत्ताए निसरह, एवं एगिदियविगलिंदियवसओ दंडतो जाव वेमाणिया, एवं पुहुचेणचि । जीवे णं भंते ! जाई दबाई मोसमासत्ताए गिण्हति ताई कि सच्चभासत्ताए निसरति मोसमासचाए सचामोसमा
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