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________________ आगम (१५) “प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [१०], ---------------- उद्देशक: [-], --------------- दारं [-], -------------- मूलं [१५९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रज्ञापनाया: मलय. वृत्ती. १०चरमाचरमपदं INI प्रत सूत्रांक [१५९]] ॥२४४॥ दीप अनुक्रम क्षेत्रचिन्तातो यदा द्रव्यचिन्तां प्रति सङ्क्रमणं तदा तानि चरमाण्यनन्तगुणानि वक्तव्यानि, तद्यथा-'सवत्थोवे एगे अचरम चरमाई खेत्ततो असंखेजगुणाई दवओ अणंतगुणाई अचरमं चरमाणि य दोषि विसेसाहियाई' इति तदेवं संस्थानान्यपि घरमाचरमादिविभागेन चिन्तितानि, सम्प्रति जीवादीन् चरमाचरमविभागेन चिन्तयति, जीवे णं भंते ! गतिचरमेणं किं चरमे अचरमे ?, गो! सिय चरमे सिय अचरमे, नेरइए ण भंते ! गतिचरमेणं किं चरिमे अचरिमे ?, गो! सिय चरमे सिय अचरम एवं निरंतरं जाव वेमाणिए, नेरइया णं भंते ! गतिचरमेणं किं चरिमा अचरिमा, गो० चरिमावि अचरिमावि, एवं निरंतरं जाव बेमाणिया । नेरइए णं भंते! ठितीचरमेणं किं चरमे अचरमे १, गो०! सिय चरमे सिय अचरमे, एवं निरंतरं जाव वेमाणिए, नेरइया णं भंते ! ठितीचरमेणं किं चरमा अचरमा, गो०! चरमावि अचरमावि, एवं निरंतरं जाव येमाणिया । नेरइया णं भंते ! भवचरमेणं किं चरमे अचरमे १, गो01 सिय चरमे सिय अचरमे, एवं निरंतरं जाव वेमाणिए, नेरइया णं भंते ! भवचरमेणं किं चरमा अचरमा, गो! चरमावि अचरमावि, एवं निरंतरं जाव वेमाणिया । नेरहए णं भंते ! भासाचरमेणं किं चरमे अचरमे, गो. सिय चरमे सिय अचरमे, एवं निरंतर जाव बेमाणिए, नेरइया मते ! भासाचरमेणं किं चरमा अचरमा, मो.! चरमावि अचरमावि, एवं जाव एगिदियवजा, निरंतरं जाव वेमाणिया । नेरइए णं भंते ! आणापाणुचरमेणं किं चरमे अचरमे, गो! सिय चरमे सिय अचरमे, एवं निरंतरं जाव वेमाणिए, नेरहया ण भंते ! आणापाणुचरमेणं किं चरमा अच [३७२] | ॥२४४॥ For P OW ~492~
SR No.004115
Book TitleAagam 15 PRAGNAPANA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1227
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size261 MB
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