________________
आगम
(१५)
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [१०], ---------------- उद्देशक: [-], --------------- दारं [-], -------------- मूलं [१५९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रज्ञापना
याः मलयवृत्ती.
१०चरमाचरमपदं
प्रत सूत्रांक [१५९]
॥२४॥
दीप अनुक्रम
सोगाढस्स अचरमस्स चरमाण य चरमंतपएसाण य अचरमंतपएसाण य दवट्टयाए पएसहयाए दबहुपएसट्टयाए कयरे२ हितो अ०० तु० वि०१, गो०! सवत्थोवे परिमंडलस्स संठाणस्स असंखेजपएसिअस्स संखेजपएसोगाढस्स दवट्ठयाए एगे अपरमे परमार्ति संखेजगुणातिं, अचरमं च चरमाणि य दोषि विसेसाहियाति पदेसहयाते सबथोवा परिमडलसंठागरस असंखेजपएसियस्स संखेजपएसोगाढस्स चरमंतपएसा अचरमंतपएसा संखिजगुणा चरमंतपएसा य अचरमंतपएसा य दोवि विसेसाहिया दबहपएसद्वयाए सव्वत्थोवे परिमंडलस्स संठाणस्स असंखेजपएसियस्स संखेजपएसोगाढस्स दबयाए एगे अचरिमे चरमाति संखेजगुणाति अचरमं च चरमाणि य दोवि विसेसाहियाति चरमंतपएसा संखेजगुणा अचरमतपएसा संखेनगुणा चरमंतपएसा य अचरमंतपएसा य दोवि विसेसाहिया, एवं जाव आयते । परिमंडलस्स णं भंते! संठाणस्स असंखेजपएसियस्स असंखेजपएसोगाढस्स अचरमस्स चरमाण य चरमंतपएसाण य अचरमंतपएसाण य दबट्टयाए पएसद्वयाए दबदुपएसट्टयाए कपरेशहितो अ००तु०वि०, गो! जहा रयणप्पभाए अप्पावहुयं तहेब निरवसेस भाणिया, एवं जाव आयते । परिमंडलस्स ण भंते ! संठाणस्स अणंतपएसियस्स संखेजपएसोगाढस्स अचरिमस्स य ४ दबट्टयाए ३ कयरेशहितो अब तु०वि०१, गो० जहा संखेजपएसिअस्स संखेजपएसोगाढस्स, नवरं संकमेणं अणंतगुणा, एवंजाब आयए, परिमंडलस्स णं भंते । संठाणस्स अणंतपएसियस्स असंखेअपएसोगाढस्स अचरमस्स य जहा रयणप्पभाए, नवरं संकमे अणतगुणा, एवं जाव आयते (सूत्रं १५९)॥
[३७२]
॥२४॥
~ 490~