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आगम
(१५)
प्रत
सूत्रांक
[१५९]
दीप
अनुक्रम
[३७२]
Educator
“प्रज्ञापना” - उपांगसूत्र - ४ ( मूलं + वृत्तिः )
दारं [-],
पदं [१०],
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..
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मूलं [१९५९]
उद्देशक: [ - ], .. आगमसूत्र [१५], उपांग सूत्र [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्तिः
नो चरमे नो अचरमे नो चरमाई नो अचरमाई नो चरमंतपरसा नो अचरमंतपएसा, नियमं अचरमं चरमाणि य चरमंतपसा य अचरतपसा य, एवं जाब आयते, परिमंडले णं भंते ! संठाणे असंखेज्जपएसिए संखेज्जपएसोगाटे किं. चरमेव पुच्छा, गो० ! असंखेज्जपएसिए संखेज्जपएसोगाढे जहा संखेज्जपएसिए, एवं जाव आयते, परिमंडले णं भंते ! ठाणे असंखेजपएसए असंखेजपएसोगाढे किं चरमे पुच्छा, गो० ! असंखिजपएसिए असंखिअपएसोगाढे नो चरमे जहा संखेज्जपदेशोगाडे एवं जाव आयते, परिमंडले णं भंते! संठाने अणतपएसिए संखिज्जपएसोगाढे किं चरमे ० पुच्छा, गो० ! तहेव जाव आयते, अणतपएसिए असंखेज्जपरसोगाढे जहा संखेज्जपएसोगाढे, एवं जाव आयते । परिमंडलसणं भंते! संठाणस्स संखेजपए सियस्स संखेज्जपएसोगाढस्स अचरिमस्स व चरिमाण य चरमंतपदेसाण य अचरमंतपएसाण य दबट्टयाए परसट्टयाए दबटुपए सट्टयाए कयरेरहिंतो अ० ० ० वि० १, गो० ! सहत्थोवे परिमंडलस्स संठाणरस संखेज्जपएसियस्स संखेअपएसोगाढस्स दवट्टयाए एगे अचस्मेि चरिभाई संखेजगुणाई अचरमं चरमाणि य दोऽकि विसेसाहियात पदेसट्टयाए सवत्थोवा परिमंडलस्स संठाणस्स संखिजपएसियस्स संखेजपएसोगाढस्स चरमंतपएसा अचरतपरसा संखेज्जगुणा चरमंतपएसा य अचरमंतपरसा य दोऽषि विसेसाहिया दट्ठपएसट्टयाए सहत्थोवे परिमंडलस्स संठाणस्स संखेज्जपएसियस्स संखेजपएसोगाढस्स दबट्टयाए एगे अचरिमे चरिमाई संखेज्जगुणाति अचरमं च चरमाणि य दोवि विसेसाहियातिं चरमंतपसा संखेजगुणा अचरिमंतपएसा संखेजगुणा चरिमंतपएसा य अचरमंतपएसा य दोवि विसेसाहिया एवं वहतंसचउरंसायएसुवि जोएयवं । परिमंडलस्स पं. भंते!. संठाणस्स असंखेज्जपएसियस्स संखेज्जपर
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