________________
आगम
(१५)
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [८], ------------ उद्देशक: [-], -------------- दारं [-], -------------- मूलं [१४७-१४८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत सूत्रांक
[१४७
-१४८]
दीप अनुक्रम [३५४-३५५]
LAMPA
वउत्ता संखिजगुणा परिग्गहसन्नोवउत्ता संखिजगुणा भयसन्नोवउत्ता संखिजगुणा । तिरिक्खजोणियाणं भंते ! किं आहारसन्नोवउता जाव परिग्गहसनोवउत्ता?, गोयमा ! ओसन्न कारणं पहुच आहारसभोवउत्ता संतदभावं पडुच आहारसनोवउचावि जाव परिग्गहसनोवउत्तावि, एएसि णं भंते ! तिरिक्खजोणियाणं आहारसबोवउत्ताणं जाव परिग्गहसन्नोवउत्ताण य कयरे कयरेहितो अप्पा चा बहुया वा तुला वा विसेसाहिया चा?, गोयमा ! सवत्थोषा तिरिक्खजोणिया परिग्गहसनोवउत्ता मेहुणसनोवउत्ता संखिज्जगुणा भयसन्नोवउत्ता संखिजगुणा आहारसन्नोवउत्ता संखिजगुणा ।। मणुस्सा णं भंते ! किं आहारसन्नोवउत्ता जाव परिग्गहसनोवउत्ता, गोयमा ! ओसन्न कारणं पडुच्च मेहुणसबोवउत्ता संततिभावं पडुच्च आहारसन्नोव उत्तावि जाव परिग्गहसनोवउत्तावि, एएसिणं भंते ! मणुस्साणं आहारसन्नोवउत्ताणं जाव परिग्गहसन्नोवउत्ताण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा, मोयमा ! सवत्थोवा मणूसा भयसबोवउत्ता आहारसनोवउत्ता संखिजगुणा परिग्गहसन्नोवउत्ता संखिजगुणा मेहुणसन्नोवउत्ता संखिजगुणा ॥ देवाणं भंते ! किं आहारसन्नोवउत्ता जाव परिग्गहसनोवउत्ता, गोयमा ! ओसन्नं कारणं पहुच्च परिग्गहसनोवउत्ता संततिभावं पडुच्च आहारसबोवउत्तावि जाव परिग्गहसन्नोवउचावि, एएसिणं भंते ! देवाणं आहारसन्नोवउचाणं जाव परिग्गहसन्नोवउताण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?, गोयमा! सवत्थोवा देवा आहारसमोवउत्ता भयसनोवउत्ता संखिजगुणा मेहुणसनोवउत्ता संखिजगुणा परिग्गहसन्नोवउत्ता संखेजगुणा (मूत्रं १४८) । इति पत्रवणाए भगवईए अट्टमं सन्नापदं समत्तं ।
seksee
~ 447~