________________
आगम
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [८], ------------ उद्देशक: [-], -------------- दारं [-], -------------- मूलं [१४७-१४८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक [१४७
प्रज्ञापनाया: मलय० वृत्ती.
e tenese
-१४८]
॥२२॥
दीप अनुक्रम [३५४-३५५]
अथ अष्टमं संज्ञाख्यं पदं प्रारभ्यते ।
18 संज्ञापदं
दश संज्ञाः तदेवं व्याख्यातं सप्तमं पदं, इदानीमष्टममारभ्यते, तस्य चायमभिसम्बन्धः, इहानन्तरपदे सत्त्वानामुच्छासपर्या-1
सू. १४७
पदण्डकभेप्तिनामकर्मयोगाश्रया क्रिया विरहाविरहकालप्रमाणेनोक्ता, सम्प्रति वेदनीयमोहनीयोदयाश्रयान् ज्ञानावरणदर्शना- नावरणक्षयोपशमाश्रयांश्चात्मपरिणामविशेषानधिकृत्य प्रश्नसूत्रमाह
रसंज्ञादिकइ णं भंते ! सन्नाओ पन्नताओ?, गोयमा ! दस सबाओ पन्नत्ताओ, तंजहा-आहारसन्ना भयसन्ना मेहुणसन्ना परिग्ग- मतामल्प. हसना कोहसन्ना माणसमा मायासन्ना लोहसन्ना लोयसन्ना ओघसना | नेरइयाणं भंते ! कति सनाओ पन्नत्ताओ', बहुता सू. गोयमा ! दस सन्नाओ पनत्ताओ, जहा-आहारसन्ना जाब ओघसना । असुरकुमाराणं भंते ! कइ सनाओ पनत्ताओ', गोयमा ! दस सन्नाओ पत्रचाओ, जहा आहारसना जाव ओघसना, एवं जाव थणियकुमाराणं । एवं पुढविकाइयाणं जाव
माणियावसाणाणं नेतई (सूत्र १४७)। नेरइयाण भंते ! किं आहारसन्नोव उत्ताभयसनोवउत्ता मेहुणसभोवउत्ता परिग्गहसनोवउत्ता?, गोयमा ओसर्व कारणं पहुच भयसन्नोवउत्ता, संतइभावं पडुच्च आहारसभोवउत्तावि जाव परिग्गहसनोवउत्तादि । ॥२२॥ एएसिणं भंते ! नेरइयाणं आहारसनोवउत्ताणं भयसबोवउचाणं मेहुणसन्नोवउत्ताणं परिग्गहसमोवउत्ताण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?, गोयमा ! सवत्थोवा नेरइया मेहुणसनोवउचा आहारसबो
ectsersese
अथ पद (०८) "संज्ञा" आरभ्यते
संज्ञाया: दश भेदस्य वर्णनं
~446~