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________________ आगम (१५) “प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [६], --------------- उद्देशक: [-], -------------- दारं [८], --------------- मूलं [१४५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] “प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रज्ञापना- तदा एकेन मम्देन द्वाभ्यां त्रिभिर्चा मन्दतरेण त्रिभिश्चतुर्भिर्वा मन्दतमेन पञ्चभिः पद्दभिः ससभिरभिर्वा, ह व्युत्काया मल- जासादिनाम्नामाकर्षनियम आयुपा सह वध्यमानानामवसातव्यो न शेषकालं, कासांचित् प्रकृतीनां ध्रुवन्धिनीत्वान्तपदे दिपरासा परावर्तमानत्वात् प्रभूतकालमपि बन्धसम्भवेनाकर्षानियमात् । इति श्रीमलयगिरिविरचितायां प्रजापना- युवा टीकायां व्युत्क्रान्त्याख्यं षष्ठं पदं समाप्तम् । भेदाः अ॥२१८॥ वसू.१४५ प्रत सूत्रांक [१४५] यावृत्ती. दीप AAAAAEE अनुक्रम इति श्रीप्रज्ञापनासूत्रे श्रीमन्मलयगिरिसरिवर्यविरचितं व्युत्कान्त्याख्यं षष्ठं पदं समासम्॥ ॥२१॥ [३५२] अत्र पद (०६) "व्युत्क्रान्ति/ (उपपात-उद्वर्तना)" परिसमाप्तम् ~440~
SR No.004115
Book TitleAagam 15 PRAGNAPANA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1227
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size261 MB
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