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आगम
(१५)
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [६], --------------- उद्देशक: [-1, -------------- दारं [२], -- ---- मूलं [१२३-१२४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत सूत्रांक
[१२३
-१२४]
पुच्छा, गोयमा ! जहन्नेणं एग समय उकोसेणं असंखेज कालं, सबसिद्धगदेवाणं पुच्छा, गोयमा ! जहणं एग समयं उकोसेणं पलिओवमस्स संखिजइभाग । सिद्धा पे भंते ! केवइयं कालं विरहिया सिझणाए पन्नत्ता?, गोयमा जहनेणं एगं समयं उफोसेणं छम्मासा।। (सूत्रं १२३) रयणप्पभापुढविनेरइया णं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उचट्टणाए पनत्ता, गोयमा ! जहरेण एग समय उक्कोसेणं चउनीसं मुहुत्ता, एवं सिद्धवजा उबट्टणावि भाणियवा जाव अणुचरोषवाइयत्ति, नवरं जोइसियवेमाणिएसु चयणति अहिलावो कायचो । दारं ॥ (सूत्रं १२४) 'श्यणप्पभापुढविनेरइया णं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उपवाएणं पन्नत्ता ?' इत्यादि पाठसिद्ध, नवरमत्रो-18 त्कर्षविपया इमाः संग्रहणिगाथा:-'चउयीसयं मुहुत्ता, सत्त य राईदियाई पक्खो य । मासो एको दुनि उ चउरोध छम्मास नरएसु ॥१॥ कमसो उकोसेणं चउबीसमुहुत्त भवणवासीसुं । अविरहिया पुढवाई विगलाणऽन्तोमुहुत् | तु॥२॥ [स]मुच्छिमतिरियपणिदिय एवं चिय गम्भ बारस मुहुत्ता । संमुच्छगम्भमणुया, कमसो चउवीस वारस || य॥३॥ पणजोइससोहम्मीसाणकप्प चउवीसई मुहत्ता उ । कप्पे सर्णकुमारे दिवसा णव वीसई मुहुत्ता ॥४॥ माहिंदे राइंदिय बारस दस मुहुत्त बंभलोगम्मि । राइंदिअद्धतेबीस खंतर होति पणयाला ॥५॥ महसुकमि असीई सहसारि सयं ततो उ कप्पदुगे । मासा संखेज्जा तह वासा संखेज उवरिदुगे ॥६॥ हिहिममज्झिमउपरिम। जहसंखं सयसहस्सलक्खाई। वासाणं विनेो उकोसेणं विरहकालो ॥७॥ कालो संखाईतो विजयाइनु चउसु |
दीप अनुक्रम [३२८-३२९]
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