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________________ आगम (१५) “प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [५], --------------- उद्देशक: [-1, -------------- दारं [-], -------------- मूलं [११८-१२१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्रांक [११८ -१२१] स्कन्धेषु मध्यमावगाहनामधिकृत्य प्रदेशपरिवृद्ध्या वृद्धिोनिश्च तावत् वक्तव्या यावद्दशप्रदेशके स्कन्धे सप्तप्रदेशपरिवृद्धिः, सा चैवं वक्तव्या-'अजहन्नमणुकोसोगाहणए दसपएसिए अजहन्नमणुक्कोसोगाहणस्स दसपएसियस्स। खंधस्स ओगाहणट्ठयाए सिय हीणे सिय तुखे सिय अभहिए जइ हीणे पएसहीणे दुपएसहीणे जाव सत्तपएसहीणे | अह अभहिए पएसजभहिए दुपएसअन्भहिए जाव सत्तपएसअब्भहिए' इति, शेषं सूत्रं स्वयमुपयुज्य परिभावनीयं सुगमत्वात्, नवरमनन्तप्रदेशकोत्कृष्टावगाहनाचिन्तायां 'ठिईएवि तुले' इति उत्कृष्टावगाहनः किलानन्तप्रदेशकः स्कन्धः स उच्यते यः समस्तलोकव्यापी स चाचित्तमहास्कन्धः केवलिसमुद्घातकर्मस्कन्धो वा, तयोश्चोभयोरपि। दण्डकपाटमन्थान्तरपूरणलक्षणचतुःसमयप्रमाणतेति तुल्यकालता, शेष सूत्रमापदपरिसमासेः प्रागुक्तभावनाऽनुसा-1 रेण खयमुपयुज्य परिभावनीयं सुगमत्वात् , नवरं जघन्यप्रदेशकाः स्कन्धाः द्विप्रदेशका उत्कृष्टप्रदेशकाः सर्वोत्कृष्टानन्तप्रदेशाः ॥ इति श्रीमलयगिरिविरचितायां प्रज्ञापनाटीकायां विशेषाख्यं पदं समाप्त । TAMIRATRAITRA..Set -Tama.TA.PATRA-ATRA इति श्री प्रज्ञा सूत्र श्रीमन्मलयगिरिमूरिवर्य विशेषापरपर्यायं पर्यायाण्यं पदं समाप्त eaeserserserserseeeeesersearceae दीप अनुक्रम [३२२-३२५] SAREarattin international अत्र पद (०५) "विशेष" परिसमाप्तम् ~ 411~
SR No.004115
Book TitleAagam 15 PRAGNAPANA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1227
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size261 MB
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