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________________ आगम (१५) “प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [५], --------------- उद्देशक: [-], -------------- दारं [-], -------------- मूलं [१०५-११०] प्रज्ञापनाया: मलयवृत्ती. प्रत सूत्रांक [१०५-११०] ५ पर्यायपदे असुरादीनां पर्यायान ॥१८५॥ न्य सू. १०५-११० पन्नत्ता, से केणद्वेणं मंते ! एवं वुच्चइ-बेइंदियाणं अर्णता पज्जवा पन्नत्ता !, गोयमा ! येईदिए बेईदियस्स दचट्ठयाए तुल्ले पएसहयाए तुल्ले ओगाहणद्वयाए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अम्भहिए, जइ हीणे असंखिज्जहभागहीणे या संखिज्जइभागहीणे चा संखिजइगुणहीणे वा असंखिजइगुणहीणे वा, अह अम्महिए असंखिजभागअन्भहिए या संखिजहभागअब्भहिए वा संखिजगुणमम्भहिए वा असंखिजइगुणमब्भहिए वा, ठिईए तिहाणवडिए, वनगंधरसफासआभिणियोहियनाणसुयनाणमइअनाणसुयअन्नाणअचक्खुदंसणपजवेहि य छहाणवडिए, एवं तेइंदियापि, एवं चरिंदियावि नवरं दो दसणा चक्खुदंसणं अचक्खुदंसणं (मू०१०७) पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पञ्जवा जहा नेरइयाणं वहा भाणियहा (सू०१०८) मणुस्साणं भंते । केवइया पज्जवा पन्नत्ता, गोयमा! अर्णता पञ्जवा पनत्ता, से केणडेणं मंते ! एवं वुच्चइ-मणुस्साणं अणंता पञ्जवा पाता, गोयमा! मासे मणूसस्स दबट्ठयाए तुल्ले पएसहयाए तुल्ले ओगाहणट्टयाए चउहाणवडिए ठिईए चउहाणवडिए बन्नगंधरसफासआभिणियोहियनाणसुयनाणओहिनाणमणपजवनाणकेवलनाणपजवेहिं तुल्ले तिहिं दसणेहिं छट्ठाणवडिए केवलदसणपज्जवेहि तुल्ले (मू०१०९) वाणमंतरा ओगाहणट्ठयाए ठिईए चउट्ठाणचडिया वण्याइहिं छट्ठाणवडिया जोइसिया बेमाणियावि एवं चेव नवरं ठिईए तिहाणवडिया (मू०११०) 'असुरकुमाराणं भंते ! केवइया पजवा पत्नत्ता ?' इत्यादि, उक्त एवार्थः प्रायः सर्वेष्वप्यसुरकुमारादिषु, ततः शासकलमपि चतुर्विंशतिदण्डकसूत्रं प्राग्वद् भावनीयं, यस्तु विशेषः स उपदयते, तत्र यत्पृथिवीकायिकादीनामवगा दीप अनुक्रम [३०९-३१४] ॥१८५॥ wwjanatarary.om ~374~
SR No.004115
Book TitleAagam 15 PRAGNAPANA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1227
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size261 MB
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