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________________ आगम (१५) “प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [४], --------------- उद्देशकः [-], --------------- दारं [-], --------- -- मूलं [९४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्रांक [९४] रटरटseeneerseaxe दीप अनुक्रम [२९८] अंबोतं, पजन्यवालुयप्पभापुढविनेरायाण मंते ! केवइयं कालं ठिई पत्रचा, गोयमा ! जहणं तिनि सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई उकोसेणं सत्त सागरोबमाई अंतोमुहुतूणाई ॥ पंकप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पनत्ता, गोयमा ! जहन्नेणं सत्त सागरोवमाई उकोसेणं दस सागरोवमाई, अपज्जत्तयपंकप्पभापुढविनेरहयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पन्नता ?, गोयमा ! जहरेणवि अंतोमुहुर्त उकोसेणवि अंतीमुहुर्त, पञ्जत्तयपंकप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पमता, गोयमा जहनेणं सत्त सागरोचमाई अंतोमुत्तूणाई उकोसेणं दस सागरोवमाई अंतोमहत्तूणाई ।। धूमप्पभापुढविनेरहयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पनत्ता?, गोयमा! जहनेणं दस सागरोवमाई उकोसेणं सत्तरससागरोवमाई, अपज्जत्तयधूमप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पत्रता , गोयमा! जहन्नेणवि अंतोमुहुर्त उक्कोसेणवि अंतोमुत्तं, पज्जत्तगमप्पभापुढविनेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पाता, गोयमा । जहनेणं दस सागरोचमाई अंतोमुत्तूणाई उक्कोसेण सत्तरससागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई ॥ तमप्पभापुढविनेरहयाण मंते ! केवइयं कालं ठिई पभत्ता, गोयमा ! जहनेणं सत्तरससागरोवमाई उकोसेणं बावीसं सागरोवमाई, अपज्जत्तयतमप्पभापुढविनेरइयाणं भते । केवइयं कालं ठिई पत्ता, गोषमा । जहनेणवि अंतोमुहुर्च उकोसेणवि भंतोमुहतं, पजत्तगतमप्पभापुढविनेरइयाण भंते ! फेवइयं कालं ठिई पत्रचा, गोयमा ! जहन्नेणं सत्तरस सागरोवमाई अंतोमुत्तूणाई उकोसेणं बावीसं सागरोवमाई अंतोमुहुराणाई ।। अहेसत्तमापुढविनेरइयाण मंते ! केवइयं कालं ठिई पत्रता, गोयमा ! जहनेणं बावीसं सागरोवमाई उकोसेणं तित्तीस सागरोवमाई अपजत्तगहेसत्तमपढविनेरझ्याणं भंते ! केवयं कालं ठिई पत्रचा, गोषमा! जहने Lotsecticesette ~341~
SR No.004115
Book TitleAagam 15 PRAGNAPANA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1227
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size261 MB
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