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आगम
(१५)
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [१], --- उद्देशक: [-], ---------- दारं [-], ----------- मूलं [...३७] + गाथा:(१०८-१२८) मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
प्रज्ञापना
मलयवृत्ती
प्रज्ञापनापदे मनुष्यप्रज्ञा.
[३७]
BCCORE
गाथा:
सहसंमुइया आसवसंवरे य रोएइ उ निसग्गो ॥११६।। जो जिणदिवे भावे चउबिहे सद्दहाइ सयमेव । एमेव नन्नहतिय निसग्गरुइत्ति नायबो ॥११७। एए चेव उ भावे उवदिहे जो परेण सद्दहह । छउमत्येण जिणेण व उपएसरुइति नायबो॥ ॥११८।। जो हेउमयाणतो आणाए रोयए पवयणं तु । एमेव नन्नहत्ति य एसो आणाई नाम ॥११९।। जो सुत्तमहिअन्तो सुएण ओगाहई उ सम्मत्तं । अंगेण वाहिरेण व सो सुत्तरुइत्ति गायत्रो॥१२०॥ एगपएणेगाई पदाई जो पसरई उ सम्म । उदएच तिल्लविंदू सो बीयरुइति नायबो ॥१२१॥ सो होइ अभिगमरुई सुयनाणं जस्स अत्यओ दिई । इकारस अंगाई पइनगा दिहिवाओ य ॥१२२।। दवाण सबभावा सबपमाणेहिं जस्स उवलद्धा । सबाहिं नयविहीहिं वित्थाररुइति नायबो ॥१२३शादसणनाणचरिते तवविणए सबसमिगतीस । जो किरियाभावरुई सो खलु किरियारुई नाम ।।१२।।। अणभिगहियकुदिही संखेवरुदति होइ नायचो । अविसारओ पवयणे अणभिग्गहिओ य सेसेसु॥१२५।जो अस्थिकायधम्म सुयधम्म खलु चरिचधम्मं च । सद्दहइ जिणाभिहियं सो धम्मरुइति नायवो ॥१२६॥ परमत्वसंथवो वा सुदिपरमत्थसेवणा बावि । बावनकुदंसणवजणा य सम्मत्तसद्दहणा ॥ १२७॥ निस्संकिय निकंखिय निवितिगिच्छा अमूढदिही य । उवव्हथिरीकरणे वच्छल्लपभावणे अट्ट ॥१२८॥ से सरागर्दसणारिया। से किं तं वीयरायदंसणा [य] रिया ?, वीयरायदसणा [य] रिया दुविहा प०, तं०-उवसंतकसायवीयरायदसणा [यरिया य खीणकसायवीयरायदसणा [य] रिया य । से किं तं उपसंतकसायवीयरायदसणा [य] रिया ?, उपसंतकसायवीयरायदंसणा [य] रिया दुविहा प०, तं०-पढमसमयउवसंतकसायवीयरायदसणा [य] रियाय अपढमसमयउवसंतकसायवीयरायदसणा [य] रिया य, अहवा चरिमसमयउवसंतकसायवी
दीप अनुक्रम [१६६-१९०]]
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