________________
आगम
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [१], ---------------- उद्देशक: [-], --------------- दारं [-], --------------- मूलं [...३७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत
प्रज्ञापनाया:मलथ. वृत्ती.
सूत्रांक [३७]]
॥५५॥
दीप
तत्राल्पवक्तव्यत्वात् प्रथमतो म्लेच्छवक्तव्यतामाह-से कि तं' इत्यादि, अथ के ते म्लेच्छाः ?, 'मिलिक्खू' इति प्रज्ञाप
नापदे मनिर्देशः प्राकृतत्वाद् आपत्वाच, सूरिराह-म्लेच्छा अनेकविधाः प्रज्ञताः, तचानेकविधत्वं शक-यवन-चिलात
नुष्यप्रज्ञा. शबर-बर्बरादिदेशभेदात् , तथा चाह-'तंजहा सगा' इत्यादि, शकदेशनिवासिनः शकाः, यवनदेश निवासिनो यव-181
| (सू.३७) नाः, एवं सर्वत्र, नवरममी नानादेशा लोकतो विज्ञेयाः ॥ आर्यप्रतिपादनार्थमाहसे कि त आयरिया, आ[य]रिया दुविहा पं०, तं०-इहिपत्ता योरिया य अणिहिपत्ता[य]रिया य, से कि त इहिपत्ता[य]रिया ?, इहिपचा[य]रिया छबिहा पं०, तं०-अरहता चकवट्टी बलदेवा वासुदेवा चारणा विजाहरा, सेनं इहिपत्ता[य]रिया । से कितं अणिहिपत्ता [य]रिया, अणिढिपत्ता[य रिया नवविहा प०, तं०-खेता[य]रियो जातिआ[य]रियों कुलारिओं कम्मारियों सिप्पारिओं भासारियाँ नाणारियाँ दसणारियाँ चारित्तारियो । से किं तं खेत्तारिया, खेत्तारिया अद्धछबीसतिविहाणा पं०, ०-रायगिह मगह चंपा अंगा तह तामलित्ति वंगा य । कंचणपुरं कलिंगा वाणारसी चेव कासी य॥१०८॥ साएय कोसला गयपुरं च कुरु सोरियं कृसट्टा य । कपिल्लं पंचाला अहिछेचा जंगला चेव।।१०९।। बारवई सोरडा मिहिले विदेहा य बच्छ कोसंबी। नंदिपुरं संडिल्ला महिलपुरमेव मलया य॥११॥ वैराड वच्छ वरणा अँच्छा तह मचियावह दसण्णा । सोलियबई य चेदी वीर्यमयं सिंधुसोचीरा ॥१११।। महुरा य मूरसेणा पौवा भंगी य मौस पुरिवहा । सावत्थी य कुणाला कोडीवरिसंच लाटा य ॥११२॥ सेयवियाविय णयरी केकयअद्धं च आरियं भणियं । इत्थुप्पची
अनुक्रम [१६६]
व्यछeee
~ 114 ~