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________________ आगम (१५) “प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [३३], -------------- उद्देशक: [-], ------------- दारं [-], -------------- मूलं [३१८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्रांक [३१८] प्रज्ञापना- याः मलया वृत्ती. ॥५४॥ दीप अनुक्रम [५८१] उच्यते, सौधर्मादिदेवानां पारभविकोऽप्युपपातकालेऽवधिः सम्भवति, स च कदाचित्सवेजघन्योऽपि, उपपातान- ३३ अवन्तरं तु तद्भवजः, ततो न कश्चिदोषः, आह च दुष्पमान्धकारनिमग्नजिनप्रवचनप्रदीपो जिनभद्रगणिक्षमाश्रमणः- धिपदं सू. "माणियाणमंगुलभागमसंखं जहण्णओ होइ । उववाए परभविओ तम्भवजो होइ तो पच्छा ॥१॥" उहुंजाव ॥३१९-३२० सगाई विमाणाईति ऊर्ध्व यावत् खकीयानि विमानानि, खकीयविमानस्तूपध्वजादिकं यावदित्यर्थः, 'संभिनं। लोगनालिं'ति परिपूर्ण चतुर्दशरज्वात्मिका लोकनाडीमिति.। संस्थानद्वारमाहनेरइयाणं भंते ! ओही किंसंठिए पं० १, गो०! तप्पागारसंठिए पं०, असुरकुमाराणं पुच्छा, गो०! पल्लगसंठिते, एवं जाव थणियकुमाराणं, पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा, गो०! णाणासंठाणसं०, एवं मणूसाणचि, वाणमंतराणं पुच्छा, गो! पडहगसं०, जोतिसिवाणं पुच्छा, गो०! झल्डरिसंठाणसं०५०, सोहम्मगदेवाणं पुच्छा, गो०1 उडमुयंगागारसंठिए पं०, एवं जाव अनुयदेवाणं, गेवेज्जगदेवाणं पूच्छा, गो! पुष्फचंगेरिसंठिए पं०, अणुचरोववाइयाणं पुच्छा, गो! जवनालियासंठिते ओही, पं०। (मूत्रं ३१९) नेरइयाणं भंते । ओहिस्स किं अंतो० बाहिं०, गो०। अंतो नो बाहि, एवं जाव थपियकुमारा, पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा, गो० नो अंतो बाहि, मणसाणं पुच्छा, गो। अंतीवि बाहिपि, वाणमंतरजोइसियवेमाणियाणं जहा नेरयाणं । नेरइयाणं भंते । किं देसोही सबोही, गोदेसोही ॥५४॥ नो सबोही, एवं आप थणियकुमारा, पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा, गो01 देसोही नो सबोही, मसाणं पुच्छा, ~ 1086~
SR No.004115
Book TitleAagam 15 PRAGNAPANA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1227
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size261 MB
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