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आगम
(१५)
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [२९], -------------- उद्देशक: [-], ------------- दारं [-], -------------- मूलं [३१२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
२९ उप
प्रज्ञापनाया मलयवृत्ती.
प्रत सूत्रांक
योगपदे
सत्र ३१२
॥५२५॥
[३१२]
दु०५०, ०-मतिअण्णाण सुया, पुढविका० अणागारोबओगे कतिविधे पं०१, मो०! एगे अचक्खुदसणअणागारोवओगे पं०, एवं जाव वणप्फइकाइयाणं । बेइंदिगाणं पुच्छा, गो०! दुविधे उवओगे पं०,०-सागारोबओगे अणामारोवओगे य, बेइंदियाणं भंते ! सागारोवओगे कतिविधे पं०१, गो० चउबिहे पं०,०-आभिणि सुय० मतिअण्णाण सुतअण्णाणसा०, बेइंदियाणं अणा० कइ०५०, गो०! एगे अचखुर्दसण अणागारोवओगे, एवं तेइंदियाणवि, चउरिदियाणवि एवं चेव, नवरं अणागारोबओगे दुविधे पं००-चक्खुदंसणअणा० अचक्खुदसणअणा० । पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं जहा नेरइयाणं । मणुस्साणं जहा ओहिए उवओगे भणितं तहेव भाणित । वाणमंतरजोतिसियवेमाणियाणं भंते 10 जहा मेरइयाणं । जीवा णं भंते ! किं सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता, गो! सागारोवउचावि अणा०, से केणडेणं भंते । एवं बुधइ जीवा सागारोवउचावि अणा०, गो० जेणं जीवा आभिणिचोहियणाण सुय०ओहिमण केवल०महअणाणसुयअण्णाणविभंगणाणोवउत्ताते णं जीवा सागारोवउत्ता, जेणं जीवा चक्खुदंसणअचक्खुदसण
ओहिदसणकेवलदसणोवउत्ता ते णं जीरा अणागारोवउत्ता, से तेणद्वेणं गो! एवं वुचह--जीवा सागारोवउत्ताचि अणागारो०, नेरइया गं भंते । किं सागारोवउत्ता अणा०१, मो० नेरइया सांगारोवउत्तावि अणागा०, से केणटेणं भंते ! एवं चुचति', गो० जे नेरइया आभिणियोहियणाण सय ओहि मतिअण्णाणसुय० विभंगनाणोवउत्ता ते ण नेरइया सागा०, जे ण नेरइया चक्खुदसणअचखुर्दसणओहि० ते ण नेरइया अणागारोवउत्ता, से तेणद्वेणं गो एवं बु० जाव सागारोवउत्तावि अणागारोबउत्ताचि, एवं जाव थणियकुमारा। पुढविकाइयाणं पुच्छा, गो० तहेव जाच जेणं पुढवि० मतिअण्णाणसुयअ
दीप
अनुक्रम [५७२]
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१५२५॥
ॐasaya92929
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