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________________ आगम (१५) “प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [२९], -------------- उद्देशक: [-], ------------- दारं [-], -------------- मूलं [३१२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: अथ एकोनत्रिंशत्तमं उपयोगाख्यं पदं ॥ २९ ॥ प्रत सूत्रांक [३१२] तदेवमुक्तमष्टाविंशतितममाहाराख्यं पदं, साम्प्रतमेकोनत्रिंशत्तममारभ्यते-अस्य चायमभिसम्बन्धः-इहानन्तरपदे गतिपरिणामविशेष आहारपरिणाम उक्तः, इह तु ज्ञानपरिणामविशेषः उपयोगः प्रतिपाद्यते, तत्र चेदमादिसूत्रम् काविहे गं भंते । उवओगे पं०१, गोदुविहे उवओगे पं०,०-सागारोवओगे य अणागारोवओगे य, सागारोवओगे णं भंते ! कतिविधे पं०१, गो.! अट्टविहे पं०, तं०-आभिणिबोहियनाणसागारोबओगे सुयणाणसामारोवओगे ओहिणाणसा० मणपज्जवनाणसा० केवलनाणसा०मतिअण्णाणसा० सुयअण्णाणसा०विभंगणाणसा० अणागारोबओगे णं भंते! कतिविहे पं०१, गो. चउबिहे पं०, ०-चपखुर्दसणअणागारोवओगे अचक्खुदंसणअणा० ओहिदसणअणागा. केवलदसणअणागारोवओगे य। एवं जीवाण, नेरइयाण भंते! कतिविधे उवओगे पं०१, गो० दुविधे उवओगे पं०,०-- सागारोवओगे य अणागारोवओगे य, नेरइयाणं भंते ! सागारोवओगे काबिहे पं०१, गो.! छबिहे पं०, ०–मतिणाणसागारोवओगे सुयणाणसा० ओहिणाणसा० मतिअण्णाणसा० सुयअण्णाण विभंगणाणसा०, नेरइया णं भंते ! अणागारोवओगे काविहे पं० त०१, गो! तिविहे पं०-चक्खुदंसण अचक्खुदसण ओहिदसणअणा०, एवं जाव थणियकुमाराणं । पुढविकाइयाणं पुच्छा, गोला दु० उवओगे पंत--सागारो० अणागारोब०, पुढवि० सागारोवओगे कतिविधे पं०१, गोक RSASSRS208232220288 दीप अनुक्रम [५७२] FOON अथ पद (२९) "उपयोग" आरब्धम् ~1053~
SR No.004115
Book TitleAagam 15 PRAGNAPANA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1227
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size261 MB
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