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आगम
(१५)
“प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [१], ...............-- उद्देशक:-1, ---------------- दारं [-], ----------- मूलं [३५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत सूत्रांक
[३५]
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परिसविशेषा अप्रतीतास्ते लोकतोऽवसेयाः । अमीषां च नव जातिकुलकोटीनां योनिप्रमुखानि शतसहस्राणि भवन्ति, यत्पुनः शरीरादिषु द्वारेषु चिन्तनं यश्च खीपुंनपुंसकानामल्पबहुत्वं तज्जीवाभिगमटीकातो वेदितव्यं 'सेत्तं'। इत्यादि । सम्प्रति खचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानभिधित्सुराहसे कि त खहयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिया ?, खहयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिया चउबिहा पं०, ०-चम्मपक्खी लोमपक्खी समुग्गपक्खी विययपक्खी, से किं तं चम्मपक्खी, चम्मपक्खी अणेगविहा प०,०-वग्गुली जलोया अडिल्ला भारंडपक्खी जीवंजीवा समुदवायसा कण्णनिया पक्खिविरालिया, जे यावने तहप्पगारा, सेनं चम्मपक्खी। से किं तं लोमपक्खी, लोमपक्खी अणेगविहा प०, तं-ढंका कंका कुरला वायसा चकागा हंसा कलहंसा रायहंसा पायहंसा आडा सेडी बगा बलागा पारिप्पवा कोंचा सारसा मेसरा मसूरा मयूरा सत्तहत्था गहरा पोंडरिया कागा कामिंजुया बंजुलगा तित्तिरा वगा लावगा कवोया कविजला पारेवया चिडगा चासा कुकुडा सुगा बरहिणा मयणसलागा कोइला सेहा परिलगमाइ, सेत्तं लोमपक्खी । से किं तं समुग्गपक्खी, समुग्गपक्खी एगागारा पत्रचा, ते णं नत्थि इई, बाहिरएसु दीवसमुदेसु भवन्ति, सेत्तं समुग्गपक्खी । से किं तं विययपक्खी ?, विययपक्खी एगागारा पन्नत्ता, ते णं नत्थि इह, पाहिरएसु दीवसमुदेसु भवन्ति, सेतं विययपक्खी । ते समासओ दुविहा प०,०-समुच्छिमा य गम्भवतिया य, तत्थ ण जे वे समुच्छिमा ते सो नपुंसगा,तत्थ णं जे ते गम्भवकंतिया ते णं तिविहा प०, तं०-इत्थी पुरिसा नपुंसगा। एएसिणं एवमाइ
दीप
अनुक्रम [१६२]
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