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आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं वृत्ति:)
शतक [१०], वर्ग -1, अंतर्-शतक [-], उद्देशक [२], मूलं [३९६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
व्याख्या
प्रत सूत्रांक [३९६]
दीप
रायगिहे जाव एवं बयासी-संवुडस्सणं भंते ! अणगारस्स वीयीपंथे ठिच्चा पुरओ रूवाई निज्झायमाणस्स | १० शतके प्रज्ञप्तिः अभयदेवीमग्गओ रूवाई अवयक्खमाणस्स पासओ रूवाई अवलोएमाणस्स उखु रुवाई ओलोएमाणस्स आहे रूबाई
४ उद्देश या वृत्तिः
आलोएमाणस्स तस्स णं भंते ! किं ईरियावहिया किरिया कज्जइ संपराइया किरिया कज्जइ ?, गोयमा । वीचिमतः * संवुडस्स णं अणगारस्स वीयीपंधे ठिचा जाव तस्स णो ईरियावहिया किरिया कजइ संपराइया किरिया
क्रिया ॥४९५0 कजइ, से केणटेणं भंते । एवं वुच्चइ संवड० जाव संपराइया किरिया कलह, गोयमा ! जस्स णं कोहमाण
दसू ३९६ मायालोभा एवं जहा सत्तमसए पढमोद्देसए जाव से णं उस्सुत्तमेव रीयति, से तेणडेणं जाव संपराइया है किरिया कजह । संवुडस्स णं भंते ! अणगारस्स अवीयीपंथे ठिच्चा पुरओ रूवाई निज्झायमाणस्स जाव तस्स
णं भंते ! किं ईरियावहिया किरिया कज्जइ, पुच्छा, गोयमा ! संवुड० जाब तस्स णं ईरियावहिया किरिया कजइ नो संपराइया किरिया कजह से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ जहा सत्तमे सए पढमोद्देसए जाव से णं
अहामुत्तमेव रीयति से तेण?णं जाव नो संपराइया किरिया कन्जद ॥ (सूत्र० ३९६) PIL 'रायगिहें' इत्यादि, तत्र 'संवुडस्स'त्ति संवृतस्य सामान्येन प्राणातिपाताद्याश्रवद्वारसंवरोपेतस्य 'बीईपंथे ठिचेति | ४|| वीचिशब्दः सम्प्रयोगे, स च सम्प्रयोगोईयोर्भवति, ततश्चेह कषायाणां जीवस्य च सम्बन्धो वीचिशब्दवाच्यः ततश्च
बीचिमतः कषायवतो मतुपप्रत्ययस्य पाठयाच लोपदर्शनात् , अथवा 'विचिर पृथग्भावे'इति वचनाद् विविच्य-पृथ-|| M॥४९५॥ ग्भूय यथाऽऽख्यातसंयमात् कषायोदयमनपवार्येभ्यर्थः, अथवा विचिन्त्य रागादिविकल्पादित्यर्थः, अथवा विरूपा कृतिः
अनुक्रम [४७७]
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