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________________ आगम (०५) "भगवती'- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [९], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [३३], मूलं [३८०-३८२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [३८० -३८२] दीप अनुक्रम तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइरसा वंदइनमंसह वंदित्ता नमंसित्ता उसभदत्तं माहणं पुरओ कडु ठिया itlचेव सपरिवारा सुस्सूसमाणी णमंसमाणी अभिमुहा विणएणं पंजलिउहा जाव पजुवासइ ( सूत्रं३८०) तए सा देवाणंदा माहणी आगयपण्हाया पप्फुयलोयणा संवरियवलयबाहा कंचुयपरिक्खित्तिया धाराहयकलंब|| गंपिव समृसचियरोमकूवा समणं भगवं महावीरं भणिमिसाए दिहीए देहमाणी चिट्ठति ॥ भंते त्ति भगवं| * गोयमे समर्ण भगवं महावीरं वंदति नमंसति वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-किण्णं भंते ! एसा देवाण दा माहणी आगयपण्हवा तं चेव जाव रोमकूवा देवाणुप्पिए अणिमिसाए विट्ठीए देहमाणी चिट्ठइ ?, गोय मादि समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी-एवं खलु गोयमा ! देवाणंदा माहणी मम अम्मगा, द अइन्नं देवाणंदाए माहणीए अत्तए, तए णं सा देवाणंदा माहणी तेणं पुचपुत्तसिणेहाणुराएणं आगयपण्हया || जाव समूसवियरोमकूवा मम अणिमिसाए विट्ठीए देहमाणी २चिट्ठा । (सूत्रं ३८१)तए णं समणे भगवं ४ महावीरे उसमदत्तस्स माहणस्स देवाणदाए माहणीए तीसे य महप्तिमहालियाए इसिपरिसाए जाव परि-ट द सा पडिगया । तए णं से उसमदते माहणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म सोचा निसम्म हट्टतुट्टे उडाए उद्देइ उवाए उढेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव नमंसित्ता एवं वदासी-एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! जहा खंदओ जाव सेयं तुझे बदहत्ति कटु उत्तरपुरच्छिमं दिसीभार्ग अवकमह उत्तदारपु०२त्ता सयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमुयह सयमे०२त्ता सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेति सयमे०२त्ता जेणेष [४६० -४६२] Himanand ऋषभदत्त एवं देवानन्दाया: अधिकार: ~920~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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