________________
आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [७], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [९], मूलं [३००] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [३००]
*
444564
पविसित्ता हाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगल पायच्छित्ते सघालंकारविभूसिए सन्नहबद्धवम्मियकवए पप्पी लियसरासणपहिए पिणद्धगेवेने विमलबरबहचिंधपट्टे गहियाउहप्पहरणे सकोरिंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरि| जमाणेणं चचामरबालवीतियंगे मंगलजयसद्दकयालोए एवं जहा जबवाइए जाव उवागकित्ता उदाई | हस्थिरायं दुरूहे, तए णं से कूणिए राया हारोत्थयसुकयरइयवच्छे जहा उववाइए जाव सेयवरचामराहिं | उडुबमाणीहिं उडुबमाणीहिं हयगयरहपवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिबुडे महया भडचाडगरविंदपरिक्खित्ते जेणेच महासिलाए कंटए संगामे तेणेव उवागच्छइ तेणेव उचागच्छित्ता महासिलाकंटयं संगामं ओयाए, पुरओ प से सक्के देविंदे देवराया एगं महं अभेजकवयं वइरपडिरूवर्ग विउवित्ताणं चिट्ठति, एवं खलु दो इंदा संगामं संगामेति, तंजहा-देविंदे य मणुइंदे य, एगहत्थिणाविणं पभू कूणिए राया पराजि|णित्तए, तए णं से कूणिए राया महासिलाकंटक संगाम संगामेमाणे नव मल्लइ नव लेच्छइ कासीकोसलगा * अट्ठारसवि गणरायाणो हयमहियपवरवीरघाइयवियडियधिद्वयपहागे किच्छपाणगए दिसो दिसिं पति४ सेहित्था ॥से केण?णं भंते ! एवं बुच्चइ महासिलाकंटए संगामे ?, गोयमा महासिलाकंटए णं संगामे | ४ वट्टमाणे जे तत्थ आसे वा हत्थी वा जोहे वा सारही वा तणेण वा पत्तेण वा कट्टेण वा सकराए वा अभि
हम्मति सबे से जाणइ महासिलाए अहं अभिहए म०२, से तेणटेणं गोयमा । महासिलाकंटए संगामे । महासिलाकंटए णं भंते! संगामे वहमाणे कति जणसयसाहस्सीओ वहियाओ?, गोयमा! चउरासीई जण
दीप अनुक्रम [३७२]
सलमन्स 4%%2546434
SAREarattin international
महाशीलाकंटकं संग्राम
~636~