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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [७], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [७], मूलं [२८९-२९०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२८९-२९०] LEAR ** दिगुणयुक्तत्वात् , 'अजीवावि भोग'त्ति अजीवद्रव्याणां विशिष्टगन्धादिगुणोपेतत्वादिति ॥ 'सवत्थोवा कामभोगि'त्ति ते हि चतुरिन्द्रियाः पञ्चेन्द्रियाश्च स्युस्ते च स्तोका एव, 'नो कामी नो भोगि'त्ति सिद्धास्ते च तेभ्योऽनन्तगुणा एव, I'भोगि'त्ति एकद्वित्रीन्द्रियास्ते च तेभ्योऽनन्तगुणा वनस्पतीनामनन्तगुणत्वादिति ॥ भोगाधिकारादिदमाह छउमरधे ण भंते। मणसे जे भविए अन्नयरेसु देवलोपसु देवत्ताए उववजित्तए, से नूर्ण भंते ! से खीणभोगी नो पभू उहाणेणं कम्मेणं बलेणं वीरिएणं पुरिसकारपरकमेणं चिउलाई भोगभोगाई ४ा मुंजमाणे विहरित्तए ?, से नूर्ण भंते ! एयम एवं वयह ?, गोयमाणो इणठे समढे, पभू णं उठाणेणवि कम्मेणथि बलेणवि वीरिएणवि पुरुसकारपरकमेणवि अन्नयराई विपुलाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए, तम्हा भोगी भोगे परिचयमाणे महानिज़रे महापज्जवसाणे भवइ । आहोहिए भंते ! मणुस्से जे भविए | अन्नयरेसु देवलोएसु एवं चेव जहा छउमत्थे जाव महापज्जवसाणे भवति । परमाहोहिए णं भंते । मणुस्से जे भविए तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झित्तए जाव अंतं करेत्तए ?, से नूणं भंते ! से खीणभोगी सेसं जहा छउआमत्थस्सवि । केवली णं भंते ! मणुस्से जे भविए तेणेव भवग्गहणणं एवं जहा परमाहोहिए जाव महापज्ज वसाणे भवइ ।। (सूत्रं २९१)॥ | 'छउमत्थे 'मित्यादि सूत्रचतुष्क, तत्र च 'से नूणं भंते ! से खीणभोगि'त्ति 'से'त्ति 'असौं' मनुष्यः 'ननं' निश्चितं भदन्त ! 'से'त्ति अयम(था)र्थः अथशब्दश्च परिप्रश्नार्थः 'खीणभोगि'त्ति भोगो जीवस्य यत्रास्ति तभोगि-शरीरं दीप अनुक्रम [३६१ -4-560900-64564CK ** ३६२] *%% mitaram.org ~626~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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