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आगम
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"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [७], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [७], मूलं [२८९-२९०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
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प्रत सूत्रांक [२८९-२९०]
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कामा । जीवाणं भंते ! कामा अजीवाणं कामा?, गोयमा ! जीवाणं कामा नो अजीवाणं कामा, कतिविहाणं भंते ! कामा पन्नता ?, गोयमा दुविहा कामा पन्नत्ता, तंजहा-सदा य रूवा य, रुवी भंते! | भोगा अरूवी भोगा?, गोयमा ! रूवी भोगा नो अरूवी भोगा, सचित्ता भंते ! भोगा अचित्ता भोगा 1.8 गोयमा ! सचित्तावि भोगा अचित्तावि भोगा, जीवा णं भंते ! भोगा ? पुच्छा, गोयमा! जीवावि भोगा अजीवावि भोगा, जीवाणं भंते । भोगा अजीवाणं भोगा, गोयमा ! जीवाणं भोगा नो अजीवाणं भोगा, कतिविहा णं भंते ! भोगा पन्नत्ता ?, गोयमा ! तिविहा भोगा पन्नत्ता तंजहा-गंधा रसा फासा । कतिविहाण भंते ! कामभोगा पन्नत्ता, गोयमा! पंचविहा कामभोगा पन्नत्सा, तंजहा-सहा रूवा गंधा रसा फासा । जीचा भंते । किं कामी भोगी, गोयमा ! जीवा कामीवि भोगीवि । से केणतुणं भंते ! एवं | वुच्चइ जीवा कामीवि भोगीवि ?, गोयमा! सोइंदियचक्खिदियाई पडुच कामी धाणिदियजिभिदियफासिंदियाई पहुच भोगी, से तेण?णं गोयमा ! जाव भोगीवि । नेरहया ण भंते ! किं कामी भोगी !, एवं चेव || एवं जाव धणियकुमारा । पुढधिकाइयाणं पुच्छा, गोयमा ! पुढविकाइया नो कामी भोगी, से केणष्टेणं जाव भोगी, गोयमा ! फासिंदियं पडुच से तेणटेणं जाव भोगी, एवं जाच वणस्सइकाइया, वेइंदिया एवं चेव नवरं जिन्भिदियफासिंदियाइं पटुच्च भोगी,तेइंदियावि एवं चेव नवरं घाणिदियजिभिदियफासिदियाई पडच | भोगी, चरिंदियाणं पुच्छा गोयमा! चरिंदिया कामीवि भोगीवि, से केणटेणं जाव भोगीधि ?, गोयमा!
दीप अनुक्रम [३६१
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