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आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [७], वर्ग [-1, अंतर्-शतक [-], उद्देशक [६], मूलं [२८८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [२८८]
व्याख्याप्रज्ञाप्त: या वृत्तिः
॥३०९॥
SASSASSAS
दीप अनुक्रम [३६०]
सोऽपि वसादिः कुणपस्तदाहाराः। ते णं ति ये तदानी क्षीणावशेषाश्चतुष्पदाः केचन भविष्यन्ति 'अच्छत्ति ऋक्षाः ७ शतके 'तरच्छत्ति व्याप्रविशेषाः 'परस्सर'त्ति शरभाः, 'हुंक'त्ति काकाः 'मग'त्ति मद्गवो-जलवायसाः 'सिहि'त्ति मयूराः॥ सप्तमशते षष्ठः॥ ७-६॥
संवृतक्रियाः सता
18 २८९ काम
भोगः २९० M अनन्तरोद्देशके नरकादावुत्पत्तिरुक्ता, सा चासंवृतानाम् , अथैतद्विपर्ययभूतस्य संवृतस्य यद्भवति तत्सप्तमोद्देशके आह
संवुडस्स णं भंते ! अणगारस्स आउत्तं गच्छमाणस्स जाव आउत्तं तुयहमाणस्स आउत्तं वत्धं पडिग्गहं| कंबलं पायपुंछणं गेण्हमाणस्स वा निक्खिवमाणस्स वा तस्स णं भंते । किं ईरियावहिया किरिया कज्जा संपराइया किरिया कबइ ?, गोयमा ! संचुडस्स णं अणगारस्स जाव तस्स णं ईरियावहिया किरिया कजह णो संपराइया किरिया कजइत्ति । से केणटेणं भंते ! एवं बुचइ-संवुडस्स णं जाव संपराइया किरिया कज्जइ, गोयमा । जस्स णं कोहमाणमायालोमा बोच्छिन्ना भवंति तस्स णं ईरियावहिया किरिया कज्जा, तहेव जाव उस्सुत्तरीयमाणस्स संपराइया किरिया कजइ, सेणं अहामुत्तमेव रीयह, से तेणटुणं गोयमा।| जाव नो संपराईया किरिया कजइ ॥ (सूत्रं २८९)॥ रुवी भंते ! कामा अरूवी कामा?, गोयमा ! रूवी | ॥३०९॥ कामा समणाउसो! नो अरूवी कामा। सचित्ता भंते ! कामा अचित्ता कामा ?, गोयमा ! सचित्तावि | कामा अचित्तावि कामा । जीवा भंते ! कामा अजीवा कामा ?, गोयमा ! जीवावि कामा अजीवावि
ACCACAN
अत्र सप्तम-शतके षष्ठं-उद्देशक: समाप्त: अथ सप्तम-शतके सप्तम-उद्देशक: आरम्भ:
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