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आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [७], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [३], मूलं [२७९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक
[२७९]
दीप
व्याख्या- गोयमा ! णो तिणढे समढे, से केणटेणं भंते ! एवं वुश्चइ नेरहयाणं जा वेयणा न सा निजरा जा निबरा न ७ शतके
प्रज्ञप्तिः । सा वेपणा, गोयमा ! मेरइयाणं कम्म वेदणा णोकम्म निजरा, से तेणष्टेणं गोयमा ! जाव न सा वेषणा, अभयदेवी एवं जाव वेमाणियाणं से नूर्ण भंते !जं वेद॑सुतं निजरिंसु जनिअरिंसु तं बेसु, णो तिणद्वे समढे, या वृत्तिःशा से केणढणं भंते । एवं बुचइज वेदेंसु नो तं निजरेंसु ज निजरेसु नो तं वेदेंसु, गोयमा ! कम्मं वेसु नो-|
सू२७८ वे॥३०॥ ||४|| कम निजरिंसु, से तेणद्वेण गोयमा ! जाव नो तं बेदेंसु, नेरइया गं भंतेज बेसु तं निजरिंस एवं
दनानिर्जरे
सू२७९ नेरइयाचि एवं जाव वेमाणिया। से नूणं भंते ! जं वेदेति तं निजरेंति जं निजरिति तं वेदेति , गोयमा। माणो तिणढे समढे, सेकेणद्वेणं भंते ! एवं बुचा जाब नो संवेदेति ?, गोयमा! कम घेदेति नोकम्मं निज़रेंति, ४ा से तेणद्वेणं गोयमा ! जाव नो तं वेदेति, एवं नेरइयावि जाव वेमाणिया । से नूणं भंते ! जं वेदिस्संति तं |
निजरिस्संति जं निजरिस्संति तं वेदिस्संति?, गोयमा ! णो तिणढे समढे, से केणटेणं जाव णो तं चेदेका स्संति, गोयमा ! कम्म वेदिस्संति नोकम्मं निजरिस्संति, से तेणढणं जाव नो तं निजरिस्संति, एवं नेर-13 ट्राच्यावि जाय घेमाणिया। से गुणं भंते । जे दणासमए से निजरासमए जे निजरासमए से वेवणासमए, Mनो तिणढे समढे, से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ जे वेयणासमए न से निज्जरासमए जे निजरासमए म से
॥३०॥ घेदणासमए , गोयमा ! जं समयं वेदेति नो तं समयं निजरेंति जं समयं निजरेंप्ति नो तं समयं वेदेति, || अमम्मि समए वेदेति अन्नम्मि समए निजरेंति अन्ने से वेदणासमए अने से निजरासमए, से तेणगुर्ण जावद
अनुक्रम [३४९]
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