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आगम
(०५)
प्रत
सूत्रांक
[२७३]
दीप
अनुक्रम [३४३]
Jain Emuratur
“भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं + वृत्तिः )
शतक [७], वर्ग [-] अंतर् शतक [-], उद्देशक [२] मूलं [ २७३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित
आगमसूत्र - [ ०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः
| यतिरिक्खपुच्छा, गोयमा ! पंचिदियतिरिक्ख० नो सहमूलगुणपञ्चक्खाणी देसमूलगुणपचक्खाणी अपचक्खाणीचि, मणुस्सा जहा जीवा, वाणमंतरजोइसवेमाणिया जहा नेरइया । एएसि णं भंते! जीवाणं सबमूलगुण|पचक्खाणीणं देसमूलगुणपञ्चक्खाणीणं अपचक्खाणीण य कपरेरहिंतो जाव विसेसाहिया वा ?, गोय| मा । सवत्थोवा जीवा सध्वमूलगुणपञ्चक्खाणी देसमूलगुणपचक्खाणी असंखेज्जगुणा अपचक्खाणी अनंतगुणा । एवं अप्पा बहुगाणि तिन्निवि जहा पढमिल्लए दंडए, नवरं सवत्थोवा पंचिदियतिरिक्खजोणिया देस| मूलगुणपञ्चक्खाणी अपञ्चक्खाणी असंखेजगुणा । जीवा णं भंते । किं सव्युत्तरगुणपञ्चकखाणी देसुत्तरगुण|पचक्खाणी अपचक्खाणी ?, गोयमा ! जीवा सव्युत्तरगुणपञ्चक्खाणीवि तिन्निवि, पंचिदियतिरिक्खजोणिया मणुस्सा य एवं चैव, सेसा अपचक्खाणी जाव वैमाणिया । एएसि णं भंते! जीवाणं सव्युत्तरगुणपञ्चक्खाणी | अप्पाबहुगाणि तिन्निधिं जहा पढमे दंडप जाव मणूसाणं ॥ जीवा णं भंते । किं संजया असंजया संजयासं जया ?, गोयमा ! जीवा संजयावि असंजयावि संजया संजयाचि तिन्निवि, एवं जहेव पन्नवणाए तहेव भाणियां, जाव बेमाणिया, अप्पाबहुगं तहेव तिव्हवि भाणियां ॥ जीवा णं भंते । किं पञ्चक्खाणी अपचक्खाणी० | पञ्चवाणापचक्खाणी १, गोयमा ! जीवा पचक्खाणीयि एवं तिन्निचि, एवं मणुस्साणवि तिन्निषि, पंचिंदियतिरिक्खजोणिघा आइलविरहिया सेसा सबै अपचक्खाणी जाब बेमाणिया । एएसि णं भंते ! जीवाणं पञ्चवखाणीणं जाव विसेसाहिया वा ?, गोयमा ! सवत्थोवा जीवा पथक्खाणी पञ्चक्खाणापञ्चक्रवाणी असंखे
प्रत्याख्यान-विषयक; अल्प- बहुत्वं
For Parts Only
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