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आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [७], वर्ग [-1, अंतर्-शतक [-], उद्देशक [२], मूलं [२७२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रज्ञप्तिः
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प्रत सूत्रांक [२७२]
दीप अनुक्रम [३४०-३४२]
व्याख्या-सप्त देशोत्तरगुणा इत्युक्तम् , अस्याश्चैतेषु पाठो देशोत्तरगुणधारिणाऽपीयमन्ते विधातव्येत्यस्यार्थस्य ख्यापनार्थ इति ॥ शतके अथोक्तभेदेन प्रत्याख्यानेन तद्विपर्ययेण च जीवादिपदानि विशेषयन्नाह
द्र उद्देशः२ अभयदेवी
मूलोत्तरभेया वृत्तिः१
जीवा णं भंते ! िमूलगुणपचक्खाणी उत्तरगुणपञ्चक्खाणी अपचक्वाणी?, मोयमा ! जीवा मूलगुणपञ्चसाक्खाणीवि उत्तरगुणपञ्चक्रवाणीवि अपच्चक्रवाणीवि । नेरइया भंते ! किंमूलणगुणपञ्चक्खाणी० पुच्छा, गोय
देषु दण्डका
अल्पबहुत्व॥२९७॥ मा ! नेरइया नो मूलगुणपञ्चक्खाणी नो उत्तरगुणपञ्चखाणी अपञ्चक्खाणी, एवं जाव चरिंदिया, पंचिंदिय-||४|| चित्ताच
तिरिक्खजोणिया मणुस्सा य जहा जीवा, वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा नेरहया ॥ एएसि णं भंते स २७३ मूलगुणपञ्चक्खाणी उत्तरगुणपचक्खाणी अपचक्वाणी य कपरे २ हितो जाव विसेसाहिया वा', गोयमा ! सवत्थोवा जीवा मूलगुणपञ्चक्खाणी उत्तरगुणपञ्चक्खाणी असंखेजगुणा अपचक्खाणी अनंतगुणा । एएसि गंभंते ! पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा, गोयमा ! सबथोवा जीवा पंचेदियतिरिक्खजोणिया मूलगु-| णपचक्खाणी उत्तरगुणपञ्चक्खाणी असंखेजगुणा अपचक्खाणी असंखिजगुणा । एएसि गं भंते ! मणुस्साणं| मूलगुणपचक्खाणीणं० पुच्छा,गोयमा सवत्थोवा मणुस्सा मूलगुणपञ्चक्खाणी उत्तरगुणपञ्चक्खाणी संखेजगुणा अपञ्चक्वाणी असंखेज्जगुणा। जीवा णं भंते ! किंसबमूलगुणपञ्चक्खाणी देसमूलगुणपञ्चक्खाणी अपचक्खाणी ?, He
॥२९७॥ गोपमा! जीवा सबमूलगुणपचक्खाणी देसमूलगुणपञ्चक्खाणी अपञ्चक्खाणीवि।नेरइयाणं पुच्छा, गोयमा! |नेरइया नो सबमूलगुणपचक्खाणी नो देसमूलगुणपचक्खाणी अपञ्चक्खाणी, एवं जाच चाउरिदिया। पंचिदि
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| प्रत्याख्यान-विषयक; अल्प-बहुत्वं
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