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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [७], वर्ग [-1, अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [२६१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२६१] दीप अनुक्रम [३२९] व्याख्या-नाणदंसणधरे अरहा जिणे केवली जीवेवि जाणइ पासह अजीवेवि जाणइ पासद तओ पच्छा सिज्झतिशतके प्रज्ञप्तिःद जाव अंतं करेइ ॥ (सूत्रं २६१)॥ उद्देशः१ अभयदेवी-IR 'सुपइगसंठिए'त्ति सुप्रतिष्ठकं शरयन्त्रक तह उपरिस्थापितकल शादिक ग्राह्यं, तथाविधेनैव लोकसादृश्योपपत्ते-11 समालोकसंस्था नं सामायितारिति, एतस्यैव भावनार्थमाह-हेहा विच्छिन्ने इत्यादि,यावत्करणात् 'मज्झे संखिसेउपि विसाले अहे पलियंकसंठाण के क्रिया प्र॥२८८।। | संठिए मजो वरवयरविग्गहिए'त्ति दृश्य, व्याख्या चास्य प्राग्वदिति ॥ अनन्तरं लोकस्वरूपमुक्त, तत्र च यत्केवली टू | करोति तद्दर्शयन्नाह-तंसी'त्यादि । 'अंतं करेइ'त्ति, अत्र क्रियोक्ता, अथ तद्विशेषमेव श्रमणोपासकस्य दर्शयन्नाह- धेऽप्यक्रिया समणोवासगस्स णं भंते सामाइयकडस्स समणोवासए अच्छमाणस्स तस्स णं भंते ! किं ईरियावहिया | सू२६१किरिया कज्जइ संपराइया किरिया कज्जा ?, गोयमा ! समणोवासयस्स णं सामाइयकडस्स समणोवासए २१२-२६३ अच्छमाणस्स आया अहिगरणीभवह आयाहिगरणवत्तियं च णं तस्स नो ईरियावहिया किरिया कज्जइ | संपराइया किरिया कज्जह से तेणद्वेणं जाव संपराइया । (सूत्रं २६२) समणोवासगस्स णं भंते ! पुवामेव तसपाणसमारंभे पञ्चक्खाए भवति पुढविसमारंभे अपञ्चक्खाए भवद से य पुढा िखणमाणेऽणयरं तसं |पाणं विहिंसेज्जा से भंते । तं वयं अतिचरति, णो तिणढे समढे, नो खलु से तस्स अतिवायाए आउ- ॥२८८॥ इति । समणोवासयरस णं भंते ! पुवामेव वणस्सइसमारंभे पञ्चक्खाए से य पुनर्वि खणमाणे अन्नयरस्स रु-1 टक्खस्स मूलं छिदेज्जा से णं भंते ! तं वयं अतिचरति !, णो तिणद्वे समढे, नो खलु तस्स अइवायाए आउ-1 RDCRECAS returasurary.com ~581~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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