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आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [६], वर्ग [-1, अंतर्-शतक [-], उद्देशक [४], मूलं [२३९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
उद्देशः४
प्रत सूत्रांक
[२३९]
व्याख्या- वजो तियभंगो सम्मामिच्छदिहिहिं छम्भंगा, संजएहिं जीवाइओ तियभंगो, असंजएहिं एगिदियवज्जो
समाया शतके प्रज्ञप्तिः तियभंगो, संजयासंजएहिं तियभंगो जीवादिओ, नोसंजयनोभसंजयनोसंजयासंजय जीवसिहि तियअभयदेवी- भंगो, सकसाईहिं जीवादिओ तियभंगो, एगिदिए अभंगकं, कोहकसाईहिं जीवएगिदियवजो तियभंगो, जीवादीनां या वृत्तिः
शा देवेहिं छम्भंगा,माणकसाईमायाकसाई जीवेगिंदियवजो तियभंगो, नेरतियदेवेहिं छन्भंगा,लोभकसाईहिंजीवे-सप्रदेशत्वा॥२६॥ गिदियवजो तियभंगो, नेरतिएमु छन्भंगा, अकसाईजीचमणुएहिं सिद्धेहिं तियभंगो, ओहियनाणे आभिणियो-दिसू२३९
हियनाणे सुयनाणे जीवादिओ तियभंगो विगलिंदिएहिं छन्भंगा, ओहिनाणे मण केवलनाणे जीवादिओ प्रतियभंगो, ओहिए अन्नाणे मतिअण्णाणे सुयअण्णाणे एगिंदियवजो तियभंगो, विभंगनाणे जीवादिओk &ातियभंगो, सजोगी जहा ओहिओ, मणजोगी वयजोगी कायजोगी जीवादिओ तियभंगो नवरं काय-12
जोगी एगिदिया तेसु अभंगकं, अजोगी जहा अलेसा, सागारोवउत्ते अणागारोवउत्तेजीवएगिदियवजो तिय
भंगो सवेयगा य जहा सकसाई, इत्थिवेयगपुरिसवेयगनपुंसगवेयगेसु जीवादिओतियभंगो, नवरं नपुंसगवेदे & एगिदिएमु अभंगयं, अचेयगा जहा अकसाई, ससरीरी जहा ओहिओ, ओरालियवेउधियसरीरार्ण जीवए-IN ॥२६॥
गिदियवजो तियभंगो, आहारगसरीरे जीवमणुएसु छम्भंगा, तेयगकम्मगाणं जहा ओहिया, असरीरेहि
जीवसिद्धेहि तियभंगो, आहारपन्नत्तीए सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए आणापाणुपज्जत्तीए जीवएगिदियहै वजो तियभंगो, भासमणपञ्चत्तीए जहा सपणी, आहारअपजत्तीए जहा अणाहारगा, सरीरअपज्जत्तीए
दीप
अनुक्रम [२८७]
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