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आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [६], वर्ग [-1, अंतर्-शतक [-], उद्देशक [४], मूलं [२३९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [२३९]]
जीवे णं भंते ! कालाएसेणं किं सपदेसे अपदेसें ?, गोयमा ! नियमा सपदेसे । नेरतिए णं भंते ! काला-IN देसेणं किं सपदेसे अपदेसे ?, गोयमा ! सिय सपदेसे सिय अपदेसे, एवं जाय सिद्धे । जीवा णं भंते ! काला|| देसेणं किं सपदेसा अपदेसा, गोयमा! नियमा सपदेसा । नेरइया णं भंते ! कालादेसेणं किं सपदेसा
अपदेसा?, गोयमा ! सवि ताव होजा सपदेसा १ अहवा सपएसा य अपदेसे य२ अहवा सपदेसा य अपदेसा य ३, एवं जावथणियकुमारा ॥ पुढविकाइया णं भंते ! किंसपदेसा अपदेसा, गोयमा सपदेसावि अपदेसावि, एवं जाव वणप्फइकाइया, सेसा जहा नेरइया तहा जाब सिद्धा॥ आहारगाणं जीवेगेंदियवजो तिय
भंगो, अणाहारगाणं जीवेगिंदियवजा छन्भंगा एवं भाणियवा-सपदेसा वा १ अपएसा वा २अहवा सपदेसे य ★ अप्पदेसे य ३ अहवा सपदेसे य अपदेसाय ४ अहवासपदेसा य अपदेसे य ५ अहवा सपदेसा य अपदेसा य Wils. सिद्धेहि तियभंगो, भवसिद्धिया अभवसिद्धिया [भवसिद्धिया] जहा ओहिया, नोभवसिद्धियनोअभवसि|| द्धिया जीवसिद्धेहिं तियभंगो, सण्णीहिं जीवादिओ तियभंगो, असण्णीहिं एगिदियवजो तिय भंगो, नेरहय* देवमणुएहि छम्भंगो, नोसन्निनोअसन्निजीवमणुयसिद्धेहिं तियभंगो सलेसा जहा ओहिया ॥ कपहलेस्सानील
लेस्सा काउलेस्सा जहा आहारओ नवरं जस्स अस्थि एयाओ, तेउलेस्साए जीवादिओ तियभंगो, नवरं पुढविका४ इएसु आउवणष्फतीसु छन्भंगा, पम्हलेससुकलेस्साए जीवादिओहिओ लियभंगो, अलेसीहिं जीवसिद्धेहिं |तियभंगो मणुस्से उभंगा, सम्मदिहिहिं जीवाइतियभंगो, विगलिं दिएसु छन्भंगा, मिच्छदिविहिं एगिदिय
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दीप
अनुक्रम [२८६]
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