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आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [३], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [४], मूलं [१५९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [१५९]
दीप अनुक्रम [१८७]
लेश्या एव भवन्तीत्यस्य दर्शनार्थ तेषां भेदेनाभिधानं, विचित्रत्वाद्वा सूत्र गतेरिति ॥ देवपरिणामाधिकारादनगाररूपद्रव्यदेवपरिणामसूत्राणिKI अणगारे णं भंते ! भावियप्पा बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू बेभारं पब्वयं उल्लंघेत्तर वा पलंघेत्तए
या?, गोयमा ! णो तिणढे समझे । अणगारे णं भंते ! भावियप्पा वाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू वेभारं पब्वयं उल्लंघेत्तए वा पलंघेत्तए वा ?, हंता पभू । अणगारे णं भंते ! भावियप्पा बाहिरए पोग्गले अपरिया-18 * इत्ता जावइयाई रायगिहे नगरे रूवाई एवइयाई विकुश्वित्ता वेभारं पब्वयं अंतो अणुप्पविसित्ता पभू समं|
वा विसमं करेत्तए विसमं वा समं करेत्तए ?, गोयमा ! णो इणढे समढे, एवं चेव वितिओऽवि आलावगोम प्राणवरं परियातित्ता पभू ॥ से भंते ! किं माई विकुब्वति अमाई विकुब्बइ, गोयमा! माहें विकुब्बड नो||8
अमाई विकुब्वति, से केणद्वेणं भंते ! एवं बुच्चइ जाव नो अमाई विकुब्वह?, गोयमा! माईए पणीयं पाणभोयणं भोचा २ वामेति तस्स णं तेणं पणीएणं पाणभोयणेणं अहि अद्विमिजा यहलीभवंति पयणुए मंससोणिए भवति, जेविय से अहाबायरा पोग्गला तेविय से परिणमंति, तंजहा-सोतिदियत्ताए जाव फासिं-18 दियत्ताए अहिअद्विमिंजकेसमंसुरोमनहत्ताए मुक्त्ताए सोणियत्ताए, अमाईणं लूहं पाणभोयणं भोचा २णो वामेइ, तस्स णं तेणं लूहेणं पाणभोयणेणं अहिअद्विमिजा. पयणु भवति बहले मंससोणिए, जेविय से अहाबादरा पोग्गला तेविष से परिणमंति, तंजहा-उच्चारत्ताए पासवणत्ताए जाव सोणियत्ताए, से तेणटेणं जाव
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