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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [३], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [१३०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१३० दीप अनुक्रम [१५६] जारिसिया णं (सकेणं देविंदेणं देवरपणा दिब्बा देविट्ठी जाव अभिसमण्णागया तारिसिया णं) देवाणुप्पिएहिं दिव्वा देविड्डी जाव अभिसमन्नागया। से णं भंते ! तीसए देवे केमहिडीए जाव केवतियं च णं पभू | विउवित्तए ?, गोयमा ! महिहीए जाव महाणुभागे, से गं तत्थ सयस्स विमाणस्स चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं चउण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं तिण्हं परिसाणं सत्तहं अणियाणं सत्तहं अणियाहिवईणं सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीणं अपणेसिं च बहूर्ण वेमाणियाणं देवाण य देवीण य जाब विहरति, एवंमहिडीए जाव एवइयं च णं पभू विउम्बित्तए, से जहाणामए जुवतिं जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेजा जहेव सफरस तहेव जाव एस णं गोयमा ! तीसयरस देवस्स अयमेयारूचे विसए विसयमेत्ते बहए नो चेव णं संप-18 & तीए विजब्बिसु वा ३ । जति णं भंते ! तीसए देवे महिड्डीए जाब एवइयं च णं पभू विउवित्तए सकस्स ण भंते ! देविंदस्स देवरन्नो अवसेसा सामाणिया देवा केमहिडीया तहेव सवं जाव एस गं गोयमा! सकस्स देविंदस्स देवरन्नो एगमेगस्स सामाणियस्स देवस्स इमेयारूवे विसयमेत्से बुइए नो चेव ण संपत्तीए विउब्बिसु वा विउविति वा विउविस्संति वा तायत्तीसा य लोगपालअग्गमहिसीणं जहेव चमरस्स नवरं दो केवलकप्पे जंबूहीवे २ अण्णं तं घेव, सेवं भंते २त्ति दोचे गोयमे जाव विहरति ॥ (सू०१३०)॥ _ 'एवं खलु'इत्यादि, 'एवम्' इति वक्ष्यमाणन्यायेन सामानिकदेवतयोत्पन्न इति योगः, 'तीसए'त्ति तिष्यकाभिधानः |'सयंसि'त्ति स्वके विमाने, 'पंचविहाए पज्जत्तीए'त्ति पर्याप्ति:--आहारशरीरादीनामभिनिर्वृत्तिः, सा चान्यत्र पोडोक्ता, ~322~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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