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आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [२], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [९२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
[९२]
दीप अनुक्रम [११३]
करंडगसमाणे मा णं सीपं मा णं उण्हं मा णं खुहा मा णं पिवासा मा णं चोरा मा णं वाला मा णं
सा मा णं मसगा मा णं वाइयपित्सियसंभियसंनिवाइयविविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतुत्ति-18 है कटु एस मे नित्थारिए समाणे परलोयस्स हियाए सुहाए खमाए नीसेसाए अणुगामियत्ताए भविस्सइ, तं| म छामि णं देवाणुप्पिया ! सयमेव मुंडावियं सयमेव सेहावियं सयमेव सिक्खावियं सयमेव आयारगोयरं|
विणयवेणइयचरणकरणजायामायावत्तियं धम्ममाइक्खि। तए णं समणे भगवं महावीरे खंदर्य कच्चायसणस्सगोतं सयमेव पवावेइ जाव धम्ममालिक्खइ, एवं देवाणुप्पिया ! गंतब्बं एवं चिट्ठियव्वं एवं निसीति* यध्वं एवं तुयट्टियव्वं एवं भुंजियव्वं एवं भासियब्वं एवं उठाए पाहिं भूएहिं जीवहिं सत्तेहिं संजमेणं
संजमियचं, अस्ति च णं अट्टे णो किंचिवि पमाइयव्वं । तए णं से खंदए कच्चायणस्सगोत्ते समणस्स भगचओ महावीरस्स इमं एयारूवं धम्मियं उचएसं सम्मं संपडिवजति तमाणाए तह गच्छइ तह चिट्टा तह
निसीयति तह तुय तह भुंजइ तह भासह तह उट्ठाए २ पाणेहिं भूएहिं जीवहिं सत्तेहिं संजमेणं संजमिहै यब्धमिति, अस्सि च णं अटे णो पमायइ । तए णं से खंदए कचाय० अणगारे जाते ईरियासमिए भासा
समिए एसणासमिए आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिए उचारपासवणखेलसिंघाणजल्लपारिहापणियासमिएम मणसमिए वयसमिए कायसमिए मणगुत्ते वइगुत्ते कायगुसे गुत्ते गुत्तिदिए गुत्तबंभयारी चाई लबू धणे
स्कंदक (खंधक) चरित्र
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