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________________ आगम (०५) "भगवती"- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [३०], वर्ग -], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [२-११], मूलं [८२६-८२८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [८२६-८२८] व्याख्या- यचं, एवं सबजीवाणं जाव वेमाणियाणं, नवरं अणंतरोववनगाणं जं जहिं अस्थि तं तहिं भाणियो । किरि- ३० शतके प्रज्ञप्तिः यावाई गं भंते! अणंतरोववन्नगा नेरइया किं नेरइयाउयं पकरेइ ? पुच्छा, गोयमा ! नो नेरइयाज्यं पकरेंति उद्दे. २-११ अभयदेवी-|| नो तिरि० नो मणु० नो देवाज्यं पकरेइ, एवं अकिरियावादीवि अन्नाणियवादीवि वेणइयवादीवि । सले-1|| यावृत्तिः२ |स्सा णं भंते! किरियावादी अणतरोववन्नगा नेरइया किं नेरहयाउयं पुच्छा, गोयमा! नो नेरच्याउयं पकरेइ हाल्प सम सू ॥९४७॥ जाव नो देवाउयं पकरेइ एवं जाव वेमाणिया, एवं सबहाणेसुवि अणंतरोववन्नगा नेरइया न किंचिवि आउयं । ८२६-८२८ पकरेइ जाव अणागारोवउत्तत्ति, एवं जाव बेमाणिया नवरं जं जस्स अत्थितं तस्स भाणियवं । किरियावादी णं भंते ! अणंतरोववन्नगा नेरइया किं भवसिद्धिया अभवसिद्धिया?, गोयमा! भवसिद्धिया नो अभवसिदिया। अकिरियावादी णं पुच्छा, गोयमा! भवसिद्धियावि अभवसिद्धियावि, एवं अन्नाणियवादीवि वेणइयवादीवि । सलेस्सा णं भंते! किरियावादी अर्णतरोववन्नगा नेरइया किं भवसिद्धिया अभवसिद्धिया ?, गोयमा! भवसिद्धिया नो अभवसिद्धिया, एवं एएणं अभिलावणं जहेव ओहिए उद्देसए नेरइयाणं वत्तद्यया भणिया तहेव इहवि भाणियथा जाव अणागारोबउत्तत्ति एवं जाव बेमाणियाणं नवरंजं जस्स अस्थि तं तस्स। भाणियब, इमं से लक्खणं-जे किरियावादी सुक्कपक्खिया सम्मामिच्छदिट्ठीया एए सवे भवसिद्धिया नो टू अभवसिद्धीया, सेसा सवे भवसिद्धीयावि अभवसिद्धीयावि । सेवं भंते! इति ।। (सूत्रं ८२६) ॥३०॥२॥ परंपरो-४॥९४७॥ ववन्नगा णं भंते ! नेरइया किरियावादी एवं जहेच ओहिओ उद्देसओ तहेव परंपरोववन्नएमुवि नेरइयादीओ दीप अनुक्रम [१०००-१००२] ~ 1898~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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