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आगम
(०५)
"भगवती'- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [३०], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-1, उद्देशक [१], मूलं [८२५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [८२५]]
दीप अनुक्रम [९९९]
व्याख्या || सलेस्सा णं भंते ! नेरहया किरियावादी किं नेरझ्याउयं, एवं सवेवि नेरइया जे किरियावादी ते मणुस्साउयं |२० शतके प्रज्ञप्तिः एग पकरेइ, जे अकिरियावादी अन्नाणियवादी वेणइयवादी ते सचट्ठाणेसुवि नो नेरइयाउयं पकरेइ तिरि- दशः १ अभयदेवी- खजोणियाउयपि पकरेइ मणुस्साउयपि पकरेइ नो देवाउयं पकरेइ, नवरं सम्मामिच्छत्ते उचरिल्लेहिं ।
क्रियावाद्या या वृत्तिः२४ | दोहिवि समोसरणेहिं न किंचिवि पकरेह जहेब जीवपदे, एवं जाव थणियकुमारा जहेव नेरइया । अकिरि
युर्वन्धादि
सु८२५ ॥९४५॥18|| यावादी णं भंते! पुढविकाइया पुच्छा, गोयमा! नो नेरइयाउयं पकरेइ तिरिक्खजोणियाउयं० मणुस्साउयं| दिनो देवाउयं पकरेइ, एवं अन्नाणियवादीवि । सलेस्सा णं भंते । एवं जं जं पदं अस्थि पुढविकाइयाणं तर्हि २/४।
मज्झिमेसु दोसु समोसरणेसु एवं चेच दुविहं आउयं पकरेइ नवरं तेउलेस्साए न किंपि पकरेइ, एवं आउक्काइयाणवि, वणस्सइकाइ०, तेउका वाउका सबहाणेसु मज्झिमेसु दोसु समोसरणेसु नो नेरइयाउयं पकतिरिक्खजो पक० नो मणु नो देवाउ० पक०, बेइंदियतेइंदियचउरिदियाणं जहा पुढविकाइयाणं
नवरं सम्मत्तनाणेसु न एकंपि आउयं पकरेइ ।। किरियावादी णं भंते । पचिं. तिरि० किं नेरइयाउयं पकरेइ 18|| पुच्छा, गोयमा जहा मणपजवनाणी, अकिरियावादी अन्नाणियवादी वेणइयवादी य चाहिंपि पकरेह, दिजहा ओहिया तहा सलेस्सावि । कण्हलेस्सा णं भंते! किरियावादी पंचिंदियतिरक्ख० किं नेरइयाजयं पुच्छा, गोयमा? नो नेरइयाउयं पकरेइ णो तिरिक्ख० नो मणुस्साउयं नो देवाउयं पकरेइ, अकिरियावादी अन्नाणि
॥९४५॥ 18 यवादी वेणइयवाई चउबिहंपि पकरेइ, जहा कण्हलेस्सा एवं नीललेस्सावि काउलेस्सावि, तेउलेस्सा जहा
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समवसरण, तस्य क्रियावादि आदि चत्वारः भेदा: एवं प्रत्येक-भेदस्य वक्तव्यता
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