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आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [२६], वर्ग ], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [४-११], मूलं [८१७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
२६ शतके उद्देशः ४
प्रत सूत्रांक
[८१०]
व्याख्या- वसेसो भाणियो । सेवं !२ जाव विहरइ ॥ २६-१॥ चरिमेणं भंते ! नेरइए पापं कम्मं किं बंधी ? पुच्छा,
प्रज्ञप्तिः दिगोयमा! एवं जहेब परंपरोववन्नएहिं उद्देसो तहेव चरिमेहिं निरवसेसो । सेवं भंते!२ जाव विहरति अभयदेषी-IM॥ २६-१०॥ अचरिमेणं भंते ! नेरहए पावं कम्मं किं बंधी? पुच्छा, गोयमा ! अत्थेगइए एवं जहेब पढ
मोद्देसए पढमपितिया भंगा भाणियचा सवत्थ जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं । अचरिमे णं भंते ! ॥९३६॥ मणुस्से पावं कम्मं किं बंधी? पुच्छा, गोयमा ! अत्धेगतिए बंधी बंध बंधिस्सइ अत्थे० बंधी बंधइ न बंधि
स्सइ अस्थगतिए बंधी न बंधइ वंघिस्सह । सलेस्से णं भंते । अचरिमे मणूसे पावं कम्मं किं बंधी!, एवं चेव |तिन्नि भंगा चरमविष्टणा भाणियवा एवं जहेच पढमुद्देसे, नवरं जेसु तत्व वीससु चत्तारि भंगा तेसु इह
आदिल्ला तिन्नि भंगा भाणियवा चरिमभंगवजा, अलेस्से केवलनाणी य अजोगीय एए तिन्निविन पुच्छिवंति, | सेसं तहेव, वाणमंतरजोइ० चेमा० जहा नेरइए । अचरिमे णं भंते ! नेरइए नाणावरणिजं कम किंबंधी
पुच्छा, गोयमा एवं जहेव पावं नवरंमणुस्सेसु सकसाईमु लोभकसाईसु य पढमबितिया भंगा सेसा अट्ठारस दाचरमविहुणा सेसं तहेव जाव वेमाणियाणं, दरिसणावरणिजंपि एवं चेव निरवसेसं, वेपणिजे सबथवि
पढमपितिया भंगा जाव बेमाणियाणं नवरं मणुस्सेसु अलेस्से केवली अजोगी य नत्थि । अचरिमे णं भंते ! ॐ नेरइए मोहणिज्ज कम्म किं बंधी ? पुच्छा, गोयमा ! जहेव पावं तहेव निरवसेसं जाव वेमाणिए । अचरिमेणं | भंते ! नेरइए आउयं कम्मं किंबंधी ? पुच्छा, गोयमा! पदमधितिया भंगा, एवं सबपदेसुवि, नेरइयाणं
११-१२ अनन्तरावगाढादीनांपापबन्धिस्वादि
दीप अनुक्रम [९८२-९९०]
सू८१७
॥९१६॥
| नारक-आदिनाम् पाप-कर्मन: आदि बन्धः
~ 1876~