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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [२६], वर्ग H], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [४-११], मूलं [८१७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [८१७] 2-%AC%C5 दीप अनुक्रम [९८२ पदमततिया भंगा नवरं सम्मामिच्छत्ते ततिओ भंगो, एवं जाव थणियकुमाराणं, पुढ विकाइयभाउकाश्यवणस्सइकाइयाणं तेउलेस्साए ततिओ मंगो सेसेसु पदेसु सवत्थ पढमततिया भंगा, तेउकाइयवाउकाइयाणं हूँ सवत्थ पढमततिया भंगा, थेबंदियतेइंदियचउ० एवं चेव नवरं सम्मत्ते ओहिनाणे आभिणियोहियनाणे सुयनाणे एएसु चउमुचि ठाणेसु ततिओ भंगो, पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं सम्मामिच्छत्ते ततिओ भंगो, | सेसेसु पदेसु सवत्थ पढ़मततिया भंगा, मणुस्साणं सम्मामिच्छत्ते अवेदए अकसाइम्मि य ततिओ भंगो.। अलेस्स केवलनाण अजोगी य न पुच्छिज्जति, सेसपदेसु सवत्थ पढमततिया भंगा, चाणमंतरजोहसियवेमा|णिया जहा नेरइया । नाम गोयं अंतराइयं च जहेव नानावरणिज्ज तहेव निरवसेसं । सेवं भंते १२ जाव विह४ रद ।। (सूत्रं ८१७)॥२६-११ उद्देसो ।। बंधिसयं सम्मत्तं ॥२६॥ एवं चतुर्थादय एकादशान्ताः, नवरम् 'अणंतरोगाढेत्ति उत्पत्तिसमयापेक्षयाऽत्रानन्तरावगाढत्वमवसेयं, अन्यथाऽनन्तरोत्पन्नानन्तरावगाढयोनिर्विशेषता न स्यात्, उक्ता चासौ 'जहेवाणंतरोववन्नएही त्यादिना, एवं परम्परावगाढोऽपि, 'अनंतराहारए'त्ति आहारकत्वप्रथमसमयवर्ती परम्पराहारकस्वाहारकत्वस्य द्वितीयादिसमयवती, 'अणं. तरपजत्त'त्ति पर्याप्तकत्वप्रथमसमयवर्ती, स च पर्याप्तिसिद्धावपि तत उत्तरकालमेव पापकर्माद्यबन्धलक्षणकार्यकारी | भवतीत्यसावनन्तरोपपन्नवयपदिश्यते, अत एवाह-एवं जहेव अणंतरोववन्नएही'त्यादि । तथा-'चरमेणं भंते ! नेरइए'त्ति, इह चरमो यः पुनस्तं भवं न प्राप्स्यति, "एवं जहेवेत्यादि, इह च यद्यप्यविशेषेणातिदेशः कृतस्तथाऽपि % -९९०] नारक-आदिनाम् पाप-कर्मन: आदि बन्ध: ~ 1877~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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