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आगम (०५)
"भगवती"- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [२६], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-1, उद्देशक [१], मूलं [८१२-८१३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक [८१२-८१३]
दीप अनुक्रम
3 यचं सेसं तहेव, मणूसस्स जचेव जीवपदे वत्सषया सचेव निरवसेसा भाणियचा, वाणमंतरस जहा असर-17 है कुमारस्स, जोइसियस्स वेमाणियस्स एवं चेव नवरं लेस्साओ जाणियबाओ, सेसं तहेव भाणियचं
(सूत्र ८१२) जीवे गंभंते ! नाणा० कम्मं किंबंधी बंधइ बंधिस्सह एवं जहेच पावकम्मरस वत्तवया तहेवा नाणावरणिज्जस्सवि भा० नवरं जीवपदे मणुस्सपदे य सकसाई जाव लोभकसाईमि य पढमबितिया भंगा| अवसेसं तंजाव वेमा०, एवं दरिसणावरणिजेणवि दंडगो भाणियको निरवसेसो॥जीवे णं भंते । वेयणिज्नं कम्मं किं बंधी पुच्छा, गोयमा ! अस्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ १ अत्थेगतिए बंधी बंधइन बंधिस्सह २ अस्गतिए बंधी न बंधइ न पंधिस्सह ४, सलेस्सेवि एवं चेव ततियविहणा भंगा. कण्हलेस्से |जाव पम्हलेस्से पढमवितिया भंगा, सुकलेस्से ततियविहूणा भंगा, अलेस्से चरिमो भंगो, कण्हपक्खिए पढमवितिया भंगा, सुफपक्खिया ततियविहूणा, एवं सम्मदिहिस्सवि, मिच्छादिहिस्स सम्मामिच्छादिहिस्स य पढमयितिया, णाणस्स ततियविहूणा आभिणियोहियनाणी जाव मणपज्जवणाणी पढम|बितिया केवलनाणी ततियविहूणा, एवं नोसन्नोवउत्ते अवेदए अकसायी सागारोवउत्ते अणागारोव18 उत्ते एएसु ततियविहूणा, अजोगिम्मि य चरिमो, सेसेसु पढमबितिया । नेरइए णं भंते ! वेयणिज्ज दि कम्मं बंधी बंधद एवं नेरतिया जाच वेमाणिपत्ति जस्स जं अत्थि सवत्धवि पढमथितिया, नवरं मणुस्से
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| नारक-आदिनाम् पाप-कर्मन: आदि बन्धः
~ 1865~