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________________ आगम (०५) प्रत सूत्रांक [८१० -८११] दीप अनुक्रम [९७५ -९७७] व्याख्याप्रज्ञप्तिः अभयदेवीया वृत्तिः २ ॥ ९३० ॥ “भगवती”- अंगसूत्र- ५ ( मूलं + वृत्ति:) शतक [२६], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [८१०-८११] + गाथा मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [०५], अंग सूत्र [०५ ] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः तृतीय उपशमकसूक्ष्मसम्परायस्य चतुर्थः क्षपकसूक्ष्मसम्परायस्य, एवं लोभकपायिणामपि वाच्यं, 'कोहकसाईणं पढम बीय'त्ति इहाभव्यस्य प्रथमो द्वितीयो भव्यविशेषस्य तृतीयचतुर्थी त्विह न तो वर्त्तमानेऽबन्धकत्वस्याभावात् 'अकसाईण' मित्यादि, तत्र 'बंधी न बंध बंधिस्सर'त्ति उपशमकमाश्रित्य 'बंधी न बंधइ न बंधिस्सर'ति क्षपकमाश्रित्येति, योगद्वारे - 'सजोगिस्स चडभंगो'त्ति अभव्यभव्य विशेषोपशमकक्षपकाणां क्रमेण चत्वारोऽप्यवसेयाः, 'अजोगिस्स चरमो' ति बध्यमानभन्त्स्यमानत्वयोस्तस्याभावादिति ॥ नेरइए णं भंते! पावं कम्मं किं बंधी बंध बंधिस्सह ?, गोयमा ! अस्थेगतिए बंधी पदमवितिया १, सलेस्से णं भंते! नेरतिए पावं कम्मं चेव, एवं कण्हलेस्सेवि नीललेस्सेवि काउलेसेवि, एवं कण्हपक्खिए सुकपक्खिए, | सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी, पाणी आभिणिबोहियनाणी सुयनाणी ओहिणाणी अन्नाणी म इअन्नाणी सुयञ्जन्नाणी विभंगनाणी आहारसन्नोवउत्ते जाव परिग्गहसन्नोवउत्ते, सवेदए नपुंसकवेदए, सकसाथी जाय लोभकसायी, सजोगी मणजोगी वघजोगी कायजोगी, सागारोवउत्ते अणागारोवडते, एएस सर्व्वसु पदे पदमवितिया भंगा भाणियता, एवं असुरकुमारस्सवि वत्तवया भाणिया नवरं तेउलेस्सा इत्थि| वेयगपुरिसवेयगा य अम्भहिया नपुंसगवेदगा न भन्नंति सेसं तं चैव सवत्थ पढमवितिया भंगा, एवं जाव धणियकुमारस्स, एवं पुढविकाइयस्सवि आउकाइयस्सवि जाब पंचिदियतिरिक्खजोणियस्सवि सवत्थवि पढमवितिया भंगा नवरं जस्स जा लेस्सा, दिट्ठी गाणं अन्नाणं वेदो जोगो य जं जस्स अस्थि तस्स भाणि Education Internation नारक- आदिनाम् पाप-कर्मन: आदि बन्ध: For Parts Only ~1864~ २६ शतके उद्देशः १ नारदीनां पापज्ञाना ववन्धि त्वादिस् |८१२-८१३ ॥ ९३० ॥
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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