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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [२६], वर्ग -], अंतर्-शतक -1, उद्देशक [१], मूलं [८१०-८११] + गाथा मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [८१० दिसू दीप अनुक्रम [९७५-९७७]] व्याख्या ॥ अथ षविंशतितमं शतकम् ॥ प्रज्ञप्ति २६ शतके अभयदेवी-&ा व्याख्यातं पञ्चविंशतितम शतम , अथ पडविंशतितममारभ्यते, अस्य चायमभिसबन्धः-अनन्तरशते नारकादिजी-IIजीवादीना उद्देशः१ यावृत्तिः। वानामुत्पत्तिरभिहिता सा च कर्मबन्धपूर्विकेतिषड्विंशतितमशते मोहकर्मबन्धोऽपि विचार्यते इत्येवंसम्बन्धस्यास्यैकाद- पापबन्धा॥९२८॥ शोदेशकप्रमाणस्य प्रत्युद्देशकं द्वारनिरूपणाय तावद्गाथामाहनमो सुयदेवयाए भगवईए । जीवा१य लेस्स २ पक्खिय ३ विट्ठी ४ अन्नाण नाण ६ सनाओ |||| लाद१०-८११ वेय ८ कसाए ९ उपओग १० जोग ११ एकारवि ठाणा ॥१॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव एवं वयासी-जीवे णं भंते! पावं कम्मं किंबंधी बंधइ बंधिस्सइ १ बंधी बंधइ ण बंधिस्सइ २ बंधी न बंधह बंधिस्सह ३ बंधी न बंधह न बंधिस्सह ४१, गोयमा! अत्धेगतिए बंधी बंधड बंधिस्सह १ अत्यंगतिए थंधी बंधइ ण पंधिस्सइ २ अत्थेगतिए बंधी ण बंधइ बंधिस्सइ ३ अत्धेगतिए बंधी ण बंधइ ण बंधिस्सइ ४-१॥ सलेस्से णं भंते! जीवे पावं कम्मं किं बंधी बंधा बंधिस्सइ१ बंधी बंधइण बंधिस्सह ? पुच्छा, गोयमा! अत्थे-13/ गतिए बंधी बंधद पंधिस्सइ १ अत्धेगतिए एवं चउभंगो । कण्हलेसे णं भंते ! जीवे पावं कम्मं किं बंधी पुच्छा, द गोयमा! अस्धेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ अत्धेगतिए यंधी बंधइन बंधिस्सइ एवं जाव पम्हलेसे सवत्थ |पढमवितियभंगा, सुकलेस्से जहा सलेस्से तहेच चउभंगो। अलेस्से णं भंते ! जीवे पाचं कम्मं किं बंधी पुच्छा, ॥२२८॥ अथ षड़विंशतितमे शतकं आरभ्यते अथ षड्वंशतितमे शतके प्रथम-उद्देशकः आरभ्यते ~ 1860 ~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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