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आगम (०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [२५], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [७], मूलं [७८९-७९२]
प्रत सूत्रांक [७८९-७९२]
व्याख्या-का ६|| गोयमा ! सबस्योवे अहक्खायसंजमस्स एगे अजहन्नमणुकोसए संजमट्ठाणे सुहुमसंपरागसंजयस्स अंतोमुहु
|२५ शतके प्रज्ञप्तिःत्तिया संजमहाणा असंखेनगुणा परिहारविमुद्वियसंजयस्स संजमट्ठाणा असंखेजगुणा सामाझ्यसंजयस्स | उद्देशः ७ अभयदेवी- छेदोवद्यावणियसंजयस्सय एएसिणं संजमट्ठाणा दोण्हवि तुल्ला असंखेजगुणा १४ ।। (सूत्रं७९१) सामाइय- कालगतिया वृत्तिः२||8संजयस्स णं भंते ! केवइया चरित्तपजवा प०१, गोयमा ! अणंता चरित्तपजवा प० एवं जाव अहक्खायसं-18 संयम १९१२॥ जयस्स ॥ सामाइयसंजए णं भंते ! सामाइयसंजयस्स सट्टाणसन्निगासेणं चरित्तपनवेहिं किं हीणे तुल्ले अभ-* नचरित्रहिए ?, गोयमा! सिय हीणे छट्ठाणवडिए, सामाइयसंजए णं भंते ! छेदोवट्ठावणियसंजयस्स परहाणसन्निगा
पर्यवाः सू द सेणं चरित्तपनवेहिं पुच्छा, गोयमा ! सिय हीणे छट्ठाणवडिए, एवं परिहारविसुद्धियस्सवि, सामाइयसंजए
७८९-७९२ लणं भंते ! सुहुमसंपरागसंजयस्स परहाणसन्निगासेणं चरित्तपज्जवे पुच्छा, गोयमा! हीणे नो तुल्ले नो अब्भ
हिए अणंतगुणहीणे, एवं अहक्खायसंजयस्सवि, एवं छेदोवडावणिएवि, हेडिल्लेसु तिमुवि समं छहाणवहिए 3 उवरिल्लेस दोसु तहेव हीणे, जहा छेदोवट्ठावणिए तहा परिहारविसुद्धिएवि, मुहुमसंपरागसंजए णं भंते ! दिसामाइयसंजयस्स परहाण पुच्छा, गोयमा!नो ही नोतुल्ले अग्भहिए अर्णतगुणमम्महिए, एवं छेओवट्ठावणिPयपरिहारविसुद्धिएमुवि समं सहाणे सिय हीणे नो तुल्ले सिय अभहिए, जइहीणे अणंतगुणहीणे अह अन्भहिए।
अणतगुणमन्भहिए, सुहमसंपरायसंजयरस अहक्खायसंजयस्स परहाणे पुच्छा, गोयमा । हीणे नो तुल्ले नो अन्भहिए अर्णतगुणहीणे, अहक्खाए हेडिल्लाणं चउपहवि नो हीणे नो तुल्ले अन्भहिए अर्णतगुणमन्भहिए,
दीप अनुक्रम [९४४-९४८..]
संयत, तस्य स्वरुपम्, सामायिकसंयत आदि पञ्च-भेदा:, संयतस्य विविध-वक्तव्यता
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