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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [२५], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [७], मूलं [७८९-७९२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [७८९-७९२] दीप अनुक्रम [९४४-९४८..] नियंठो, एवं अहक्खाओवि १२॥(सूत्रं ७८९) सामाइयसंजए णं भंते! कालगए समाणे किं गतिं गच्छति? गोयमा ! देवगति गच्छति, देवगतिं गच्छमाणे किं भवणवासीसु उवव० वाणमंतर उषयजेजा जोश-13 सिएसु उववजेज्जा बेमाणिएसु उववज्जेजा ?, गो! णो भवणवासीसु उववज्जेजा जहा कसायकुसीले, एवं छेदोवट्ठावणिएवि, परिहारविमुहिए जहा पुलाए, सुहमसंपराए जहा नियंठे, अहक्खाए पुच्छा, गोयमा। एवं अहकखायसंजएवि जाव अजहन्नमणुकोसेणं अणुत्तरविमाणेसु उववज्जेजा, अत्धेगतिए सिझंति जावला ★ अंतं करेंति ॥ सामाइयसंजए णं भंते ! देवलोगेसु उववजमाणे किं इंदत्ताए उववजति पुच्छा, गोयमा! अविराहणं पहुच एवं जहा कसायकुसीले, एवं छेदोवट्ठावणिएवि, परिहारविसुद्धिए जहा पुलाए, सेसा जहा 2 नियंठे । सामाइयसंजयस्स णं भंते ! देवलोगेसुउवबजमाणस्स केवतियं कालं ठिती प०१,गोयमा! जहन्नेणं दो पलिओषमाई कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई, एवं छेदोवट्ठावणिएचि, परिहारविसुद्धियरस पुच्छा, गोयमा: जहन्नेणं दो पलिओवमाई उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमाई, सेसाणं जहा नियंठस्स १३ ।। (सूत्रं ७९०)सामा| इयसंजयस्स णं भंते ! केवइया संजमट्ठाणा पन्नत्ता?, गोयमा ! असंखेजा संजमठाणा प०, एवं जाव परि-ट्र हारविसुद्धियस्स, सुहमसंपरायसंजयस्स पुच्छा, गोयमा! असंखेज्जा अंतोमुहुतिया संजमट्ठाणा प०, अह|क्खायसंजयस्स पुच्छा, गोयमा! एगे अजहन्नमणुकोसए संजमट्ठाणे । एएसिणं भंते! सामाइयछेदोवद्या|| वणियपरिहारविसुद्धियसुहमसंपरागअहक्खायसंजयाणं संजमट्ठाणाणं कयरे २ जाव विसेसाहिया था ? संयत, तस्य स्वरुपम्, सामायिकसंयत आदि पञ्च-भेदा:, संयतस्य विविध-वक्तव्यता ~ 1827~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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