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आगम
(०५)
"भगवती'- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [१], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [७], मूलं [६१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [६१]
दीप अनुक्रम [८३]
सइंदिए वकमह, से तेण?णाजीवे णं भंते !गभं वकममाणे किं ससरीरी वकमा असरीरी वक्कमइ ?, गोयमा! सिय ससरीरी वसिय असरीरी वकमइ, से केण?ण ?, गोयमा! ओरालियवेउब्वियआहारयाई पडुब्य
असरीरी व तेयाकम्मा०प० सस वक्त से तेण?णं गोयमा । जीवे णं भंते ! गम्भं वकममाणे तप्पडम*याए किमाहारमाहारेइ ?, गोयमा ! माउओयं पिउसुकं तं तदुभयसंसिर्ल्ड कलुस किब्विसं तप्पढमयाए आ
हारमाहारेइ । जीवेणं भंते ! गम्भगए समाणे किमा हारमाहारेइ ?, गोयमा ! जं से माया नाणाविहाओ रसविगईओ आहारमाहारेइ तदेकदेसेणं ओयमाहारेइ । जीवस्स णं भंते ! गम्भगयस्स समाणस्स अस्थि है
उच्चारेइ वा पासवणेइ वा खेलेइ वा सिंघाणेइ वा वंतेइ वा पित्तेइ वा!, णो इणद्वे समढे, से केणटेणं ?, गो भयमा ! जीवे णं गभगए समाणे जमाहारेइ तं चिणाइ तं सोइंदियत्ताए जाव फासिंदियत्ताए अहिअष्टि
मिंजकेसमंसुरोमनहत्ताप, से तेणटेणं । जीवे ण भंते ! गभगए समाणे पभू मुहेणं कावलियं आहारं आहारित्तए, गोयमा ! णो इणढे समडे, से केणट्टेणं ?, गोयमा ! जीवे णं गम्भगए समाणे सवओ आहारेइ सब्धओ परिणामेइ सब्बओ उस्ससह सवओ निस्ससइ अभिक्खणं आहारेइ अभिक्खणं परिणामेइ अभि
स्वर्ण ऊस्ससइ अभिक्खणं निस्ससह आहच आहारोह आहच परिणामेह आहच उस्ससइ आहथ नीससह ।। & माउजीचरसहरणी पुत्तजीवरसहरणी माउजीवपडिबद्धा पुत्तजीवं फुडा तम्हा आहारेह सम्हा परिणामेह, I Sh
अवरापि य णं पुत्तजीवपडिबद्धा माउजीवफुडा तम्हा चिणाइ तम्हा उवचिणाइ से तेणद्वेणं० जाव नो पक्ष
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