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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [२५], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-1, उद्देशक [२], मूलं [७२०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [७२०]] दसविहा प०,०-बंधा इत्यादि, तथा 'ते णं भंते ! किं संखेज्जा असंखेजा अर्णता?, गोयमा ! नो संखेजा नो असंखेजा अणंता, से केण?णं भंते ! एवं बुच्चइ ?, गोयमा ! अणंता परमाणू अर्णता दुपएसिया खंधा अर्णता तिपएसिया खंधा जाव अर्णता अणंतपएसिया खंध'त्ति ॥ द्रव्याधिकारादेवेदमाह-- जीवदवाणं भंते ! अजीबदद्या परिभोगत्ताए हवमागच्छंति अजीवदवाणं जीवदया परिभोगत्ताए | हबमागच्छंति ?, गोयमा ! जीवदवाणं अजीवदवा परिभोगत्ताए हवमागच्छति नो अजीवदवाणं जीवदवा परिभोगत्ताए हवमागच्छंति, से केणटेणं भंते ! एवं वुचइ जाव हत्वमागच्छंति ?, गोयमा ! जीवदवाणं अजीवदचे परियादियंति अजीव० २ ओरालियं वेउब्वियं आहारगं तेयगं कम्मर्ग सोइंदियं जाब फासिंदियं । मणजोगं वइजोगं कायजोगं आणापाणत्तं च निवत्तियंति से तेणडेणं जाव हदमागच्छंति, नेरतिया || भंते ! अजीवदचा परिभोगत्ताए हवमागच्छंति अजीवदवाणं नेरतिया परिभोगत्ताए ?, गोयमा ! नेरतियाणं अजीवदया जाव हवमागच्छति नो अजीवदवाणं नेरतिया हवमागच्छति, से केण?णं ?, गोयमा ! नेरतिया अजीवदवे परियादियंति अ०२ वेवियतेयगकम्मगसोइंदियजाव फासिदियं आणापाणुत्तं चतु निवत्तियंति, से तेणडेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ जाव वेमाणिया नवरं सरीरइंदियजोगा भाणियवा जस्स जे अस्थि (सूत्र ७२१)। दीप अनुक्रम [८६६] ~ 1715~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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