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आगम
(०५)
"भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [२५], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [७१९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [७१९]]
सगस्स कयरे २ जाव विसेसा?, गोयमा ! सवयोवे कम्मगसरीरजहन्न जोए १ ओरालियमीसगस्स जहदानजोए असंखे०२ वेउवियमीसगस्स जहन्नए असं०३ ओरालियसरीरस्स जहनए जोए असं०४ चेउधि-II
यसरीरस्स जहन्नए जोए असं०५ कम्मगसरीरस्स उक्कोसए जोए असंखे०६ आहारगमीसगस्स जहन्नए।
जोए असं०७ तस्स चेव उकोसए जोए असं०८ ओरालियमीसगस्स ९ घेउवियमीसगस्स १०, एएसि|४ दणं उक्कोसए जोए दोण्हवि तुल्ले असंखे, असच्चामोसमणजोगस्स जहन्नए जोए असं० ११ आहारसरीरस्सा में जहन्नए जोए असंखे० १२ तिविहस्स मणजोगस्स १५ चउविहस्स वयजोगस्स १९ एएसिणं सत्ताह वि 8/तुल्ले जहन्नए जोए असं०, आहारगसरीरस्स उक्कोसए जोए असं० २० ओरालियसरीरस्स वेउवियस्स चउधिहस्स य मणजोगस्स चउचिहस्स य वइजोगस्स एएसि णं दसपहवि तुल्ले उक्कोसए जोए असंखेजगुणे ३० सेवं भंते ! २त्ति (सून ७१९)॥ पणवीसइमे सए पढ़मो उद्देसो २५-१॥
'कइविहे ण' मित्यादि, व्याख्या चास्य प्राग्वत् ॥ योगस्यैवाल्पबहुत्वं प्रकारान्तरेणाह-एयस्स ण' मित्यादि, इहापि योगः परिस्पन्द एव, इह चेयं स्थापना
१TY सख्यमनो असत्यमान, मिश्रमन असल्याम सत्यवान'भसखवाक विषयाक् असत्या. औदारिक औदारिक मेध पैकिय बैकिप आहारक आहारकमिया कामग अधन्य १२ जघन्य १२ जघन्य १२ जघन्य १० जघन्य जयन्य १२ जघन्य १२ जघन्य १२ जघन्य अपन्य २ जघन्य ५ जघन्य३ जपन्य ११ जघन्य ७ जघन्य १ उरक१४ उरकृ१४ कष्ट१४'उत्कृY४ अष्ट/उत्कृष्ट१४ उत्कृष्ट उत्कृष्ट१४ उस्कृष्ट ४ कुष्टर र उत्कृष्ट उकए १३ उकृष्ट का
दीप अनुक्रम [८६५]
योगः, तस्य भेदा: एवं अल्प-बहत्वं
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