SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1712
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [२५], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-1, उद्देशक [१], मूलं [७१७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: % पशमविशेषसामर्थ्याद् यथोक्कमसङ्ख्यातगुणत्वं न विरुध्यते, न ह्यल्पकायस्याल्प एव स्पन्दो भवति महाकायस्य वा महानेव, व्यत्ययेनापि तस्य दर्शनादिति, इह चेयं स्थापना 7-4 प्रत सूत्रांक [७१७] --X मुहुम । सहुम । बादर । बादर । बेनी रिद्री । तेरिंदी तेरिद्री । चरिद्री चरितीभिसनी । असनी। सभी | समीप । अपजशपजत अपजत पजत अपज्जत्त पजत अप. | पजत । अपजत पजत अपजत पजत अपवत्त जघन्य । जघन्य जपन्य जपन्य उपन्य जघन्य जघन्य अपन्य जपन्य जघन्य जघन्य जघन्य जघन्य | जधन्य असं.२ १४४ १५ उत्कृष्ट | उत्कृष्ट उत्कृष्ट उत्कृष्ट उत्कृष्ट । राष्ट्र उत्कृष्ट | उत्कृष्ट उस्कृष्ट | उत्कृष्ट उत्कृष्ट उस्कृष्ट उस्कृष्ट । उरकृष्ट | १० | १२ | ११ १३ । १९ २४ १. २५ । २१ ।२६ २३ २७ २८ AAS -952 दीप अनुक्रम [८६३] योगाधिकारादेवेदमाह दो भंते । नेरतिया पढमसमयोववन्नगा कि समजोगी कि विसमजोगी?, गोयमा ! सिय समजोगी सिय * विसमजोगी, से केणतुणं भंते ! एवं वुच्चति सिय समजोगी सिय विसमजोगी, गोयमा! आहारयाओ वा से अणाहारए अणाहारयाओ वा से आहारए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अन्भहिए जइ हीणे असंखेजइभागहीणे वा संखेज्जइभागहीणे वा संखेजगुणहीणे वा असंखेजगुणहीणे चा अह अम्भहिए असंखेजइभा-| गमन्भहिए वा संखेजहभागमभहिए वा संखेजगुणमन्भहिए वा असंखेजगुणमभहिए वा से तेणद्वेणं जाब सिय विसमजोगी एवं जाव बेमाणियाणं (सूत्र ७१८)॥ %-54-1994 चतुर्दशविध: जीवाः, तेषाम् अल्प-बहुत्व ~1711~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy