SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1699
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [२४], वर्ग -], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [२३], मूलं [७१४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: व्याख्याप्रज्ञप्ति अभयदेवीया वृत्तिः२ प्रत सूत्रांक [७१४] ॥८४७॥ चत्ता पलि. वाससयसहस्सम०३, सो चेव अप्पणा जहन्नकाल द्वितीओ जाओ जहनेणं अट्ठभागपलिओ-८| २४ शतके वमद्वितीएसु उपवनो उक्कोसेणवि अहभागपलिओवमट्टितीएसु उववन्नो, ते णं भंते ! जीचा एस चेव वत्तबया नवरं ओगाहणा जहन्नेणं धणुहपुहुत्तं उक्को सातिरेगाई अट्ठारसधणुसयाई ठिती जहन्ने अहभागपलिओ- ज्य वम उक्को अट्ठभागपलिओवमं, एवं अणुबंधोऽवि सेसं तहेव, कालादे जह० दो अट्ठभागपलिओवमाई । त्पादः उको दो अट्ठभागपलिओवमाई एवतियं जहन्नकालद्वितियस्स एस चेव एको गमो ६, सो चेव अप्पणा उक्को सू७१४ सकालट्टितिओ जाओ सा चेव ओहिया वत्तवया नवरं ठिती जहन्नेणं तिन्नि पलिउको तिन्नि पलिओव-18 माइं एवं अणुबंधोचि, सेसं तं चेच, एवं पच्छिमा तिन्नि गमगा यचा नवरं ठिति संवेहं च जाणेजा, एते हैं। सत्त गमगा । जइ संखेजबासाउयसनिपचिंदिय० संखेनवासाउयाणं जहेव असुरकुमारेसु उववजमाणाणं | तहेव नववि गमा भाणियचा नवरं जोतिसियठिति संवेहं च जाणेज्जा सेसं तहेव निरवसेसं भाणियवं, जह मणुस्सेहिंतो उचव भेदो तहेव जाव असंखेजवासाउयसन्निमणुस्से णं भंते ! जे भविए जोइसिएसु उवववित्तए से णं भंते । एवं जहा असंखेज्जवासाउयसन्निपंचिंदियस्स जोइसिएसु चेव उववजमाणस्स सत्त | गमगा तहेव मणुस्साणवि नवरं ओगाहणाविसेसो पढमेसु तिसु गमएम ओगाहणा जहन्नेणं सातिरेगाई। |नव धणुसयाई उक्को तिन्नि गाउयाई मजिझमगमए जह. सातिरेगाई नव धणुसयाई उक्कोसेणवि सातिरेगाई। नव धणुसयाई, पच्छिमेसु तिसु गमएसु जह तिन्नि गाउयाई उक्कोसे तिन्नि गाउयाई सेसं तहेब निरवसेसं दीप अनुक्रम [८५९] ॥८४७॥ ~ 1698~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy