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________________ आगम (०५) प्रत सूत्रांक [ ६९४] दीप अनुक्रम [ ८३९] “भगवती”- अंगसूत्र-५ ( मूलं + वृत्ति:) शतक [२४], वर्ग [-], अंतर् शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [६९४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [०५], अंग सूत्र [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः संघयणी, सरीरोगाहणा जहेब असन्नीणं जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं उक्कोसेणं जोयणसहस्सं, तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरगा किंसंठिया प० १, गोयमा ! छद्दिहसंठिया प०, तंजहा - समचरंस० निग्गोह० जावहुंडा, तेसि णं भंते ! जीवाणं कति लेस्साओ प० १, गोयमा ! छल्लेसाओ पन्नत्ताओ, तंजहा कण्हलेस्सा जाव सुकलेस्सा, दिट्ठी तिविहावि तिन्नि नाणा तिन्नि अन्नाणा भयणाए जोगो तिथिहोवि सेसं जहा असनीणं जाव अणुबंधो, नवरं पंच समुग्धाया प० तं०-आदिल्लगा, वेदो तिविहोवि, अवसेसं तं चैव जाव से णं भंते! पज्जन्तसंखेज्जवासाज्य जान तिरिक्खजोणिए रयणप्पभा जाव करेजा १. गोयमा ! भवादेसेणं जहन्त्रेणं दो भवग्गहणाई उकासेणं अट्ठ भवग्गहणारं कालादेसेणं जहनेणं दसवाससहस्साई अंतोमुत्तममहियाई कोसेणं चत्तारि सागरोवमाई चहिं पुचकोडीहिं अमहियाई एवतियं काल सेवेला जाव | करेज्जा १ । पाशसंखेज जाय जे भविए जहनकालजाव से णं भंते! केवतियकालठितीएस उववज्जेज्जा ?, गो० जह० दसवा० ठितीएस उकोसेणवि दसवाससहस्सट्टितीएस जाव उववज्जेज्जा, ते णं भंते जीवा एवं सो चैव पढमो गमओ निरवसेसो भाणियवो जाव कालादेसेणं जहनेणं दसवाससहस्साई अंतोमुत्रामन्नहियाई उफोसेणं चत्तारि पुलकोडीओ बत्तालीसाए वाससहस्सेहिं अन्महियाओ एवतिथं कालं सेवेला एव| तियं कालं गतिरागति करेजा २, सो चेव उक्कोसकालद्वितीएस उबवन्तो जहनेणं सागरोवमहितीएस उकोसे| णचि सागरोवमट्टितीएस उववज्जेज्जा, अवसेसे परिमाणादीओ भवादेसपज्जवसाणो सो चेव पदमगमो यो Education Internation संज्ञी - जीवानाम् उत्पत्तिः For Penal Use Only ~ 1623~ wor
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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