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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [२४], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-1, उद्देशक [१], मूलं [६९४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [६९४] व्याख्या- जाय कालादेसेणं जहन्नेणं सागरोवमं अंतोमुहुत्तमम्भहियं उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाई चाहिं पुक्कोडीहिं| २४ शतके प्रज्ञप्तिः । अमहियाई एवतियं काल सेविजा जावकरेजा ३, जहन्नकालद्वितीयपजत्तसंखेजवासाउयसन्निपंचिंदियतिरि- उद्देशः१ अभयदेवी- खजोणिए णं भंते ! जे भविए रयणप्पभपुढविजाव उववजित्तए से णं भंते ! केवतिकालद्वितीएसु उववजेया मृत्तिः२|| | ज्जा ?, गोयमा ! जहन्नेणं दसवाससहस्सद्वितीएसु उक्कोसेणं सागरोवमट्टितीएसु उववजेज्जा, ते णं भंते ! जीवा त्पादः सू ६९४ ८१०॥ अवसेसो सो चेव गमओ नवरं इमाई अहणाणत्ताई-सरीरोगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं उक्कोसेणं धणुहपुहुतं, लेस्साओ तिन्नि आदिल्लाओ, णो सम्मदिही मिच्छादिट्ठी को सम्मामिच्छादिही, णोणाणी दो अन्नाणा णियमं, समुग्घाया आदिल्ला तिन्नि, आउं अज्झवसाणा अणुबंधो य जहेव असन्नीण अवसेस जहा पढमगमए जाव कालादेसेणं जहन्नेणं दसवाससहस्साई अंतोमुत्तमम्भहियाई उफोसेणं चत्तारि साग-1 रोवमाई चाहिं अंतोमुहुत्तेहिं अन्महियाई एचतियं कालं जाव करेजा ४, सो चेव जहन्नकालहितीएसु उवही वन्नो जहन्नेणं दसवाससहस्सहितीएसु उक्कोसेणवि दसवाससहस्सहितीपसु उववजेजा, ते णं भंते ! एवं सो चेव चउत्थो गमओ निरवसेसो भाणियचो जावकालादेसेणं जहन्नेणं दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्तमन्भहियाई उकोसेणं चत्तालीसं वाससहस्साई चाहिं अंतोमुहुत्तेहिं अन्भहियाई एवतियं जाव करेजा ५१सो चेव उक्कोसकालहितीएम उववन्नो जहन्नेणं सागरोवमहितीएसु उववज्जेज्जा उक्कोसेणवि सागरोवमहितीएसु 11८१०॥ उववजेजा ते णं भंते ! एवं सो चेव चउत्थो गमओ निरवसेसो भाणियबो जाव कालादेसेर्ण जहन्नेणं साग-द दीप अनुक्रम [८३९] संज्ञी-जीवानाम् उत्पत्ति: ~1624 ~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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