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________________ आगम (०५) "भगवती'- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१८], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [७], मूलं [६३४-६३८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [६३४-६३८] है क्षपयितुं शक्यत्वात् तथाविधाल्पस्नेहाहारवत्, तथा तावत एव काशान् असुरवर्जितभवनपतयो द्वाभ्यां वर्षशताभ्यां || क्षपयन्ति, तदीयपुगलानां व्यन्तरपुद्गलापेक्षया प्रकृष्टानुभावेन बहुतरकालेन क्षपयितुं शक्यत्वात् सिमग्धतराहारवदिति,. एवमुत्तरत्रापि भाक्ना कार्येति ॥ अष्टादशशते सप्तमोद्देशकः ।। १८-७॥ S दीप अनुक्रम [७४४-७४८] EXSASUR सप्तमोदेशकान्ते कर्मक्षपणोक्का, अष्टमे तु तद्वन्धो निरूप्यत इत्येवंसम्बद्धस्यास्पेदमादिसूत्रम्रायगिहे जाप एवं षपासी-अणगारस्स णं भंते ! भावियप्पणो पुरओ दुहओ जुगमायाए पेहाए रीयं री-12 यमाणस्स पायरस अहे कुकुडपोते वा बट्टापोते वा कुलिंगच्छाए वा परियाक्जेजा तस्सगं भंते । किं ईरि-18 यावहिया किरिया कजह संपराइया किरिया कज्जा, गोयमा । अणगारस्स णं भावियप्पणो जाय तस्स णं है ईरियाचहिया किरिया कज्जह नो संपराइया किरिया कला, से केणटेणं भंते ! एवं दुचर जहा सत्तमसए । संवुडसए जाव अट्ठो निक्खित्तो। सेवं भंते सेवं भंते । जाब विहरति ।। तए णं समणे भगवं महावीरे ४ बदिया जाव विहरति (सूत्र ३९) 'रायगिः'इत्यादि, 'पुरओ'त्ति अमतः 'दुहओ'त्ति 'विधा' अन्तराऽन्तरा पार्वतः पृष्ठतश्चेत्यर्थः 'जुगमायाए सिर | यूपमात्रया या 'पहाए'त्ति प्रेक्ष्य २ रीय'ति गर्त-गमन 'रीयमाणस्स'त्ति कुर्वत इत्यर्थः 'कुकुडपोयए'त्ति कुकुटडिम्भः 'चहापोयए'त्ति इद वर्तका-पक्षिविशेष: 'कुलिंगच्छाएव'त्ति फ्पिीसिकादिसटशः 'परियायलेज'त्ति 'पर्वापयेत्त' || अत्र अष्टादशमे शतके सप्तम-उद्देशक: परिसमाप्त: अथ अष्टादशमे शतके अष्टम-उद्देशक: आरभ्यते ~1511~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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